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उसने मालवा की ओर देखा और माथे पर वन डाल लिए। "अच्छा, मैं भागया" वासली बोला और एक हाथ में मछली और दूसरे में एक चाकू लिये हुए झोपड़ी में घुसा । अपनी व्यग्रता से उसने छुटकारा पा लिया या-उसे अपने हृदय की गहराई में छिपाकर और अब उन दोनों की ओर शांत होकर देख रहा था परन्तु उसकी हरकतें उसकी बेचैनी को प्रकट कर रही थीं जो उसके लिए विल्कुल नई वात थी। "मैं जाकर पहले भाग जला श्राऊँ फिर अन्दर पाऊंगा। तब हम __ लोग देर तक खूब वातें करेंगे, क्यों याकोव" उसने कहा। इतना कह वह फिर झोपड़ी में चला गया मालवा वरावर तरबूज के बीज कुटकती रही और बेतकल्लुफी से याकोव को घूरती रही । परन्तु याकोव ने, यद्यपि वह उनकी तरफ देखने के लिये सरस रहा था, कोशिश करके अपनी आँखें हटा ली। कुछ समय बाद यह खामोशी उसे अखरने लगी और वह वोला : "श्रोह, मैं अपना यैना तो नाव में ही भूल पाया, जाकर ले पाऊँ ।" वह श्राहिस्ते से उठा और झोपड़ी के वाहर आया। उसी के फौरन बाद-वासिली लौटा । मालवा को ओर मुकते हुये उसने गुस्से और जल्दी से पूछा : "सुम उसके साथ क्यों आई? मैं तुम्हारे बारे में उससे क्या कहूँगा ? सुम मेरी कौन लगती हो ? "मैं आगई और इस विषय में इसना ही काफी है।" मालवा ने कटुतापूर्वक उत्तर दिया । "ओह, तुम ..."वेवकूफ औरत ! अब मैं क्या करूँ ? उससे साफ साफ कह दूं ? इस बात को विल्कुल जाहिर कर दूँ ? घर पर मेरी स्त्री है। 'उसकी माँ .."तुम्हें यह बात समझ लेनी चाहिए थी।" "इससे मेरा क्या सम्बन्ध है ? क्या तुम समझते हो मैं उससे डरती हू या तुमसे डरती हूँ ?" मालवा ने अपनी कंजी घाखों को सिकोड़ते हुए