पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/११२

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कामरेड प्र यन्त धूमिल और अशक्त थीं । वह नगर शताब्दियों के परिश्रम से बना था । वह राक्षस जिसने मनुष्यों का रक्त चूस लिया था अपनी सम्पूर्ण कुरूपता को लेकर उनके सामने खड़ा हो गया था - पत्थर और काठ के एक दयनीय ढेर के समान । मकानों की अधेरी खिड़कियाँ भूखी और दुखी सी सड़क की ओर झाँक रहीं थों नहाँ जीवन के सच्चे स्वामी हृदय में एक नया उत्साह लिए चल रहे थे । वे भी भूखे थे, वास्तव में दूसरों से अधिक भूखे, परतु उनकी यह भूख की वेदना उनकी परिचित थी । उनका शारीरिक कष्ट उन्हें इतना असह्य नहीं था जितना कि जीवन के उन स्वामियों को । न इसने उनकी आमा में प्रज्वलित उस ज्वाला को ही कम किया था । वे अपनी शक्ति का परिचय पाकर उत्तजित हो रहे थे । पाने वाली विजय का विश्वास उनकी पाखों में चमक रहा था । ___ वे नगर की सड़कों पर धूप रहे थे जो उनके लिए एक उदास , दृढ़ कारागृह के समान थी । जहाँ उनको श्रारमा पर असंख्य चोटे पहुचाई गई थी । उन्होंने अपने परिश्रम के महत्व को देखा और इसने उनको जीवन का स्वामी बनने के पवित्र अधिकार के प्रति सतर्क बना दिया , जीवन के नियम ।। बनाने वाला तथा उसे उम्पन्न करने वाला । और फिर एक नई शक्ति के साथ , एक चकाचौध उत्पन्न कर देने वाली चमक के साथ , सव को संगठित करने वाला वह जीवनदास , शब्द गुज उठा । " कामरेड । " यह शब्द वर्तमान के मूठे शब्दों के बीच गूंज उठा, भविष्य के सुखद्र सन्देश के समान , जिसम एक नया जीवन सब की प्रतीक्षा कर रहा था । वह जीवन दूर था या पास ? उन्होंने महसूस किया कि वे ही इसका निर्णय करगे । वे आजादी के पास पहन रहे थे और वे स्वयम् ही उसके भागमन को स्थगित काते जा रहे थे । [ ३ ] वह वेश्या जो क्ल ए , प्राधे जानवर के समान थी और गन्दी गलियों में यकी हुई इम यात का इन्तजार करती रहती थी कि कोई