पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

११६ कामरेड इस पर, इस शब्द की ध्वनि से भयभीत होकर उसने घोडे को तेज चलाने के लिये लगाम सम्हाजी और उस राहगीर की तरफ देखा । वह अव भी अपने चौड़े , लाल चेहरे से मुस्कराहट दूर करने में असमर्थ था । उस राहगीर ने प्रेम पूर्वक उसकी ओर देखा और सिर हिलासे हुए बोला , " धन्यवाद, कामरेड ! मुझे ज्यादा दूर नहीं जाना है ।" अव भी मुस्कराते और प्रसन्नता से अपनी ऑखें झपकाते हुए वह ताँगे वाला अपनी सोट पर मुड़ा और सड़क पर खड़खड़ाहट का तेज शोर करते हुए चला गया । फुटपाथों पर श्रादमी बड़े २ मुडो में चल रहे थे और चिनगारी के सनान वह महान शब्द , जो संसार को सगठित करने के लिये उत्पन्न हुआ __ या , उन लोगों में इधर से उधर घूम रहा था । " कामरेड । " एक पुलिस का श्रादमी - गलमुच्छेवाला, गम्भीर और महवपूर्ण , . एक मुड के पास पाया , जो सड़क के किनारे व्याख्यान देने वाले वृद्ध मनुपय के चारो ओर इकटठा हो गया था । कुछ देर तक उसकी बातें सुन कर उसने नन्नता पूर्वक कहा " सड़क पर सभा करना कानून के खिलाफ है . "तितर वितर हो लामो , महाशयो . . . . . . " और एक मैकिन्ड रुक कर उसने अपनी आँखें नीची की और धोरे से जोड "कामरेढो . " उन लोगों के चेहरे पर जो इस शब्द को अपने हृदय में संजोये हुए थे, जिन्होंने अपने रक्त और मॉम से इसे और एकता की पुकार की तीव्र ध्वनि को बढ़ाया था -निर्माता का गर्व झलकने लगा । और यह स्पष्ट हो रहा था कि वह शक्ति , जिले इन लोगों ने मुक्तहस्त होकर इस शब्द पर व्यय कया या अविनाशी और अक्षय थी ।