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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/११८

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मोड्वीया की लड़की ___ उसने पहाडी की चोटी पर पहुँच कर नीचे की और देखा । पाँच चिमनियों, एक चिकने दैत्य के पंजों को तरह, जिसे उस दुर्गन्धपूर्ण दलदल में गाढ़ दिया गया हो , ऊपर उठी हुई थीं । पतली टेढ़ी मेढ़ी नदी जिसे छोटे छोटे अस्थि टापुत्री ने काट दिया था , लाल दिखाई दे रही थी । जब डूबता हुधा सूरज पहादियों के बीच गर्दले पानी में अपनी अन्तिम किरण फेंकता ता दलदल में उगे हुए छोटे छोटे चीड़ के मुद फेफड़ों पर पड़े हुए क्षय रोग के धब्बे से चमकने लगते । वे सुन्दर किरणें उस नीरस दलदल में पड़कर बर्वाद हो रही थीं । दलदल का सड़ा दुर्गन्ध से भरा हुआ पानी उन्हें पूरी तरह से निगल रहा था । " अच्छा, अब चलें " याकोव बुदबुदाया । परन्तु वह कुछ देर तक विचारों में खोया हुश्रा खड़ा रहा । घर के दरवाज़ पर उसकी मुलाकात वास्याजिन से हुई । वह दुबला पतला , गना और काना श्रादमी था । अपनी फूटी हुई दाहिनी आँख के गढ़े को छिपाने के लिए वह बाहर निकलते समय धूप का काला चश्मा पहन लेता था जिसकी वजह से घास पास रहने वाले मजदूरों ने उसका नाम - " धूप का चश्मा वाली आँख का वालेक " रख रखा था । उसकी मुड़ी हुई नाक के नीचे चितरे हुए , सूअर के से कड़े कुछ भरे बाल उगे हुए थे जिन्हें वह छुट्टियों वाले दिन किसी चिपकने वाली चीज से मूडों की तरह चिपका लेता था जिससे उसका होठ इस प्रकार सिकुड़ जाता मानो वह लगातार किसी गर्म चीज के ऊपर फूक मार रहा हो । अभी उसका मुँह एक मधुर मुस्कराहट से फैल गया था जब उसने अपो दामाद से फुसफुसाते हुए कहा : " शनिवार की रात को , अगर तुम्हें सुमीता हो तो " पावेल ने बीम कोपेक वाला एक सिक्का उसके हाथ पर रख दिया और घान स ढके हुए एक लोटे से अहाते में होकर गुजरा जहाँ एक कोने में पेर के नीचे बाने की एक मेज सजी हुई थी । मेज के नीचे चर्फिन नामक कुत्ता रठा दुधा अपनी पूद में से कलीलियाँ पद रहा था । बरसातो की