मोवीया की लड़की १२१ सोड़ियों पर उसकी स्त्री , पैर फैलाये बैठी थी । उसकी बेटी , तीन साल की छोटो मी श्रोल्गा, घास पर लड़खड़ाती हुई चल रही थी । जब उसने अपने पिता को देखा तो अपनी दोनों छोटी छोटी हथेलियों उसको ओर बढ़ा चहकी : न " टा -दा । दाद - श्रा श्रानो ! "इतनी देर कसे हुई ? " उसफी खी ने शक्ति होकर पूछा - " और सब लोग तो देर के घर आ गये ? " उसने चुपचाप गहरी साँस लो - सब चीजें पहले जैसे ही थीं । अपनी लडको की नाक को उँगलो से छूते हुए उसने अपनी स्त्री के फूले हुए पेट की ओर अपराधी की तरह देखा । " जल्दी करो ! हाथ मुंह धो लो ! " स्त्री ने कहा । वह चला गया और उसके पीछे शिकायत भरे शब्दों की एक बौछार सो आईः " तुमने फिर पिता को शराब पीने के लिये पैसे दे दिये ? मैंने तुमसे हजारों वारं ऐसा न करने के लिए कहा है । लेकिन मेरी बातों को तुम्हारे लिये क्या कीमत है । मैं तुम्हारी प्रागिनी नहीं हूँ । तुम मुझे रात की मुलाकाता के समय अब नहीं पा सकोगे जिस तरह अपनी उन कुलटा धौरनोको पात हो । " पावेल ने हाय मुंह धोया और अपने कानों में माउन के माग भरने का प्रयत्न किया जिससे वह उस पुराने भाषण को न सुन सके जो उसके चारों तरफ लकडी की सूसी छोलन की तरह सदसता रहा या । टसे ऐसा यनुभव दुशा जैसे उसको सो उसके हृदय को क्सिी मोधरे रन्दे से छील रही हो । उसने उन दिनों को याद किया जा थपनी नो से उसकी पहली मुलाकात हुई थी । कुहरे से ढकी हुई चाँदनी रातों को जब वे शहर को चदकों पर घूमते थे, बरफ पर फिसलने वाली गाठो पर पहाड़ी के नीचे सैर करते थे, रात को नर्कस में जाते थे । सिनेमा में उनका समय आनन्द में फ्टता था । उस अन्धकार में उस समय एक दूसरे से सट पर बैनामा मच्छा
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