१२६ मोड्वीया की लड़की अपने सिर को कौवे की तरह एक तरफ मुका लिया था और अपने दामाद पर आँख गढ़ाकर उसने पसली चहचहाती हुई श्रावाज में , जिसमें द्वेष भरा था , कहना शुरू किया " अच्छा, वो जर्मनी में सब ठीक है, उँह ? और यहाँ के पैसे का क्या हुआ ? " और वह अपनी कुर्सी पर ऊपर नीचे उछलता हुआ कूकता रहा । छोटी श्रीलगा पर भी उसकी इस हसी का असर पड़ा । उसने ताली बजाई और चम्मच को मेज के नीचे गिराकर अपनी माँ से सिर पर एक थप्पड़ खाया । माँ ने चिल्लाते हुए श्राज्ञा दी : " उसे ऊपर उठा, शैतान " वची सुबकती हुई धीरे धीरे रोने लगी । बाप ने रोती हुई बेटो को अपने सीने से चिपटा कर अपने चारों ओर देखा । शाम की धुध बढ़ती जा रही थी । एक घण्टे वाद उजेला और अंधेरा मिलकर एक भूरे धुंधलके में बदल जायेंगे । कुछ अविवाहित प्रसन्न नवयुवकों का सुन्दर संगीत और हाथ से । बजाये जाने वाले बाजों का परेशान कर देने वाला स्वर हवा में लहरा रहा था । उसके ससुर के शब्द उसके चारों तरफ चिममादडा की तरह मंडरा रहे थे । " नहीं , तुम्हें अपनी श्रामदनी के विषय में सोचना चाहिए न कि जर्मनी के विषय में । तुम मेरी वान मानो । एक बार जय तुमने शादी करली है तो तुम्हें अपनी श्रामदनो के विषय में सोचना है । हाँ , साहब और अगर तुमने बच्चे पैदा करना शुरू कर दिया है तो उन्हें इस दुनियाँ में / अच्छी तरह से रखो और यह तुम तभी कर सकते हो जब तुम्हारी धामढनी अच्छी हो , हाँ , साहव खूब मोटी श्रामदनी हो । " पकियों लेती हुई बेटी को हायों में मुलाते हुए याकोब अपने ससुर के विषय में मोच रहा था । चार साल पहले उमका परिचय एक भिन्न प्रकृति के पालेक से हुश्रा या ! उसे याद पाया कि कैसे ईटों से
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