१२८ मोड्वोया की लड़की " अगर यह सब बेवकूफी न होती . " " हाँ , हाँ , हाँ " उसके बाप की नीरस अावाज ने चोट की । चाँद का लाल गोला काले पेडों के ऊपर चढ़ आया । पावेल वरसाती __ की सीढ़ियों पर अपनी स्त्री की बगल में बैठा हुआ उसके बालों को थपथपात __ रहा और बातें करता रहा - धीरे धीरे , फुसफुसाहट के स्वर में " अगर मै जेल चला जाऊँ तो कामरेड तुम्हारी मदद करेंगे " "मैं दावे के साथ कह सकती हूँ कि उसकी काई श्राशा नहीं " दाशा नाक के स्वर में वाली । " हम सब लोगों को कोशिश करनी चाहिये और सगठित होना चाहिये । " " काशिश । फिर तुमने शादी किसलिए की थी ? " उसके प्रिय विचार उसके मस्तिष्क और हृदय में चक्कर काटने लगे । उसने दाशा के नीरस विरोधों की चिन्ता नहीं की और दाशा ने उसकी बातें । नहीं सुनी । "उस बेवकूफी की वात के बारे में मुझसे कुछ मत कहो । तुम पहले महीने मे सौ रूबल लाया करते थे और अव - क्या लाते हो ? " " यह मेरा दोप नहीं, सव की ही हालत ऐसी है " परिस्थिति को गोली मारो अपने कामरेडों का साथ छोड़ो और मन लगाकर अपना काम देखो । " वह नत्रतापूर्वक और स्नेह से बात करना चाह रही थी परन्तु दिन / भर सटते रहने के कारण थक गई थी और सोना चाहती थी । ये वातं तीन माल मे इसी तरह होती चली श्रारही थीं और हालत में कोई सुधार नहीं हो पाया था । वह अपने श्रादमी के लिये चिन्तित थी । वह हमेशा की तरह प्रय मी उतना ही सीधा, दुनियाँदारी से अनमिज्ञ तथा उतना ही अक्खड़ था । यह दगा देख कर दागा के हृदय में अपने और अपनी लकदी के भविष्य के बारे में
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