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मालवा १७ "या हा-था!... "मैं कभी कभी अपने साप सोचता थाश्रय याकोव कैसा लगता होगा ?" बेटे ने खुशी से सुस्कराते हुए बाप की मोर देखा और इस मुस्कराहट से वासिली की हिम्मत यहो । "अच्छी औरत है, है न," क्यों उसने पूछा। "इतनी बुरी तो नहीं है,"अोखें झपकाते हुए याकोब ने धीरे से कहा। "भाई मेरे, एक आदमो क्या कर सकता है," हाय हिलाते हुए पासिनी बोला-"पहले तो मैंने इसे बस्ति किया परन्तु फिर मुझसे नहीं रहा गया। यह आदत है..." में एक शादीशुदा श्रादमी हूँ। और इसके अलावा वह मेरे कपड़े सी देती है और दूसरे काम कर देती है। प्यारे, श्रोह प्यारे ! जिस तरह कि तुम मौत से नहीं यच सकते उसी तरह औरत से भी महीं बच सकते ।" उसने उत्तेजित होकर वात खत्म की। "इससे मुझे क्या मतलब ?" याकोव ने कहा-"यह तुम्हारी अपनी पात है। इसका फैसला करने का हक मुझे नहीं है।" लेकिन उसने अपने शाप मन में कहा : "तुम मुझे यह फहकर यहका नहीं सकते कि इस तरह की औरत यठकर के तुम्हारी पतलून ठीक करेगी।" "मरी यात यह है कि"वासिखी योला, "मैं सिर्फ पक्षातीस साल का हम उस पर ज्यादा पैसा पर्च नहीं करता । वह मेरी स्त्री नहीं है।" "दरप्रसल यही बात है" याकोव सहमत होकर घोला पीर अपने धाप सोचा - "लेफिन वह मुम्हारी जेय पूरी तरह साली कर देवी, मगत लगा सकता " माता चोदफा की एका घोरज धीर फार दिस्कृट लेकर वापस पाई। ये खाने के लिए बैठ गए और ये घुपचाप साये रहे । मदलीही इड़ियों को खूर जोर से धाराज करते हुए चूम और फिर दरवाजे के पास पालू में फेंक देते । याकोव ने पूरा माया-मृगे को सरह । इमसे मालवा को पड़ो बुझायोकि उसका चेहरा एक मर और कोमात गुस्कान में चमक रठा जप उसने याफोर को अपने चिने गालों को पुज्ञा कर, मोटे