मोड्वीया को लड़की "दार्या ! मेरे कामरेडों में कोई भी बदमाश नहीं है । " " चीखो मत " दाशा अपनी कोहनियों से रोकती रही परन्तु पावेल ने उसे अपनी बाहों में भर कर उससे सर्दीकोव का सारा किस्सा कह सुनाया । पहले उसे बड़ा मजा आया फिर अपने पति को घृणा से दूर धकेलते हुये उसने फटकारना शुरू किया " श्रोह , नीच शैतान ! क्या तुम्हारे कहने का यह मतलब है कि मार्या इन सब हो रही हरकतों के बारे में जानती थी ? " " अरे भगवान, तू कहीं उससे कह मत बैठना । " पावेल चौक कर चीख उठा । " श्राह ! मैं कहूँगी । मेरा बुरा हो अगर मैं उससे न कहूँ | " दाशा ने भयानक रूप से मुस्कराते हुये कहा - "यह उनकी शिक्षा का नतीजा है । बदमाश हैं सब के सब ! मुझे उसकी स्त्री के लिये अफसोस है, सचमुच बेचारी अक्सर बच्चे पैदा करती है - तुम्हारा इस बारे में क्या ख्याल है, क्यों ? " दाशा को आदत थी कि जब उसे गुस्सा आता था तो वह सिर को . . ऊपर की तरफ झटकारती , नाक से गहरी गहरी साँसें लेती जिससे उसके नथुने घोड़े की तरह फूलने और कॉपने लगते । इससे वह और भी अधिक आकर्षक हो उठती परन्तु इससे पावेल के मन में विरक्ति उत्पन्न हो जाती और एक भयंकर घृणा जाग उठती । वह उसे बीमार , दीन और नन्न रूप में देखना पसन्द करता था या एक भिकारी को सड़कों पर चिथड़ों में नम्रता पूर्वक मुकते । और सर्दीकोव की स्त्री चालाक और चतुर थी । वह ऐसे आदमियों द्वारा भीख माँगा जाना पसन्द करती थी जो उसके हृदय के लिए पूर्णतः अपरिचत होते, उस हृदय के लिए जो काला और मारी गोल वस्तु के समान था जैसे एक लोहे की गेंद । शनिवार की शाम को पावेल लिजा के कमरे में बैठा हुश्रा फुसफुसाते हुए कह रहा या " वे मनुष्यों को उस हालत में ले आये हैं जहाँ अच्छाई और
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