पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१५३

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मोर्ड वीया की लड़की १२५ इन्सानियत भी जो मनुष्यों में स्वाभाविक रूप से होती है, गन्दगी के समान दिखाई देने लगती है । मेरी आत्मा के चारों ओर एक फन्दा जकद दिया गया है । मैं नहीं जानता कि इससे कैसे छुटकारा पाऊँ । मै उस स्त्री और अपनी लदमी को भी प्यार करता हूं - वास्तव में प्यार करता है परन्तु वह मेरी बेटी को क्या दे सकती है ? और मैं तुम्हारे बिना नहीं रह सकता, लिजा । शाह , मोड्वीया को सुन्दरी , तुम्हारी श्रामा वदी सुन्दर है, तुम मेरी मित्र हो ... " वह नीचा सिर किए उसकी बात सुनती रही और गम्भीरतापूर्वक धीरे से उसने अपनी संलिप्त राय प्रकट की । " मैं नहीं जानती कि तुम क्या करोगे । मैं तुम्हारी सहायता करने को कोई तरकोच नही सोच पाती ..... ... ....... । परन्तु उसने एक रास्ता निकाल लिया । एक बार अपने ससुर और स्त्री से कलह होने के बाद पावेल बहुत निराश होकर , सामोश शहर की सड़कों पर, चहार दीवारियों, ताले लगे हुए फाटकों और काली सिदकियों -जिनके पीदे सन्त की रात बाहर की रंडी चाँदनी से छिपी हुई पदी थी , को पीछे छोड़ता हुधा थके हुए कदमों से चुपचाप चला जा रहा था । __ "इस तरफ या उस तरफ ! " उसने अपने आप सोचा । कमी रोशनी में और फिर मकानों और पेड़ों की छाया में होता हुया वह भागे बदला गया । " नहीं , इन सबको जहन्नुम में जाने दो ! जैसी जिन्दगी में चाया येसो ही बितानी चाहिए या दाशा की तरह इसे प्यार करना पड़ेगा । मुझे मिन्दगी प्यारी है " " मैं ऊब गया हूं । " यह मुश्किल में चल पा रहा था । उसके पैर छाया में इस प्रकार पांगले मिचाई पर रहे थे मानों ये भोगो यातू या दलदल में हो या सड़क पार कर दूसरी तरफ भा गया जो पीली धोदनी में नहा रही थी । नार यस मन्ती रात्रि में अनिच्छापूर्वक पच्ची नीट में इय गमा परन्तु काकी लायाय मदत पर मय भी हम प्रकार घूम सी पी मे किमी