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मालवा और उनके ऊपर एक बड़ा सा टाट का घोरा डाल दिया और इस तरह बनाई हुई उस छायादार जगह में सिर के नीचे हाथ का तकिया लगाकर लेट गया और आसमान की ओर देखने लगा । जव मालवा उसके पास रेत में श्राकर । बैठ गई तो उसने उसकी ओर मुंह घुमा लिया । मालवा ने देखा कि वह असन्तुष्ट और व्यम हो रहा था। "यया यात है, क्या तुम्हें अपने बेटे को देखकर खुशी नहीं हुई ?" उसने हंसते हुए प्ला। ___"वह यहाँ है....."मुझ पर हसता हुया......... - सिर्फ तुम्हारी वजह से " वासिली घुर्राया। "ओह ! मेरी वजह से ?" मालवा ने मूक आश्चर्य से पूछा । "तुम्हारा क्या स्याल है?" "दुष्ट, पुराने पापी ? अब तुम मुझ से क्या कराना चाहते हो ? मैं तुम्हारे पास थाना बन्द कर दूं ? अच्छी बात है, मैं नहीं साऊंगी।" "तुम जादूगरनी तो नहीं हो " वासिनी ने दाटते हुए कहा"ह ! तुम सब एक से हो । वह मेरे ऊपर हंस रहा है और तुम भी पही कर रही हो..."और फिर भी तुम मेरी सबसे गहरी दोस्त हो ! तुम मुफ पर किसलिए हंस रही हो-शैतान ?" इतना कह कर उसने मालवा की परफ पीठ कर ली और घुप होगया । अपने घुटनों को मिखाकर शरीर को दिलाते . या अपनी कंजी आँखों से चमकते हुए समुद्र को देखने लगी। उसके चेहरे मुस्कान छा रही यो-ठन विजयी मुस्कानों में से एक, जो उन नारियों के ५.. भस्यधिक परिमाण में रहती हैं जिन्हें अपने सौदयं की शकि का ज्ञान होता है। एक पालदार नाव पानी पर तरयो हुई घजी ला रही यो-एक विशाल, महे, भूरे रस के पंजों वाली चिरिया के समान । किनारे से यह बहुत दूर यो और समुद्र में भीवर भागे को चोर बदती चली जा रही यो, जहाँ समुद्र और प्राकारा मनन्त की नौलिमा में घुल मिल जाते है। "तुम कुप कहती क्यों नहीं " वासिलो बोला।