घुदिया इजरगिल ही जैसी कि वह स्वयं बीस साल पहले थी । जब उसकी जाति के प्राद मियों ने उससे पूछा कि इतने दिन वह कहाँ रही, तो उसने बताया कि यह पनी उसे पहाड़ों पर उड़ा ले गया था और वहाँ यह उपकी पन्नी बनकर रही थी । वह युवक उसका पुत्र था । उसका पिता, वह पक्षी, मर चुका था । जब वह बहुत कमजोर हो गया तो एक दिन श्राकाश में बहुत ऊँचा उदा और वहाँ से अपने पंख बन्द कर उन पहाड़ी को दरारों में गिर कर मर गया ... .....! " सब लोगों ने श्राश्चर्यपूर्वक उस गरड़ -पुत्र की श्रीर देगा और पाया कि वह रूपरंग्या में उनसे भिन्न नहीं था परन्तु उसके नेत्रों में पक्षीराज गरुड़ के नेत्रों की सो शान्त गर्व को छाया थी । जब वे उसमे बात करने तो श्रगर उसका मन होता तो बाते कर लेता श्रन्यथा चुप रह जाता । जब उस जाति के बड़े बूते सरदारों ने थाकर उससे बात की तो उसने उनके साथ पूर्ण समानता का व्यवहार किया । उन्होंने इसे अपना अपमान समझा । उन्होंने उसे झिड़का और कहा कि वह अभी बिना पनों पाले उस छोटे से तीर की तरह है जिस के फल पर शान नहीं पढ़ाई गई है । साथ ही उन्होने बताया कि उस जैसे हजारों उनकी इज्जत करत है और शाला मानते है । इतना ही नहीं बल्कि उसमें दूनी अवस्था बालं पारी व्यक्ति भी उनकी माता का पालन करते है । परन्तु उसने ग पूर्वक वहादुरी से उनकी और देगा और बोला कि मंमार में उनकी ममागता करने वाला अन्य कोई भी नहीं है । और अगर दूसर उनका सम्मान करते हैं ना यह ऐसा करने का कोई इरादा नहीं रखता । इस परवान विग और मोधपूर्वक कहा ने हमारे यहाँ स्थान नहीं मिल सकना । जहाँ पर गई वरों पला जाय । " या मा और अपनी प्रधानुसार उस सुन्दर लड़यो को प्रार या जो यात दर में उसकी शोर रस्ठको यो देख रही थी । पाम पर पर उसने उम्प लकी को अपनी मुलाधों में कम कर माने में लगा
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