पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८०

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बुढ़िया इजरगिल ३८३ गम्भीरता पूर्वक बोला .. ..."मुझे ठीक याद नहीं कि उसने क्या कहा था कि वह इस उपकार के बदले - मैंने भागने मे उसको जो मदद को है - मुझे प्रेम करेगा । और उसने मेरे सामने घुटना के बल बैठ कर मुस्कराते हुए ६ -हा - "मेरी रानी । " कृतघ्न कुत्ता ! मैं ऐसी पागल हो उठी कि मैने कस कर उसके एक ठोकर दी और उसके मुंह पर थप्पड़ मारना चाहती थी कि वह लड़खटाया और उछल कर खड़ा हो गया । वह पीला पड़ गया और खड़ा २ सुझे धमकाता रहा । बाकी के तीनो मुझे घूर रहे थे । परन्तु किसी ने एक भी शब्द नहीं कहा । मैंने उनकी ओर देखा और मुझे उनके प्रति घृणा और अपेक्षा हो उठी -मुझे अच्छी तरह याद है कि उस समय मेरे मनमें उनके प्रति यही भावनायें थी । मैने उनसे कहा - " चले जायो " । बदले में उन कुत्तो ने मुझसे पूछा - " क्या तुम वापस जाकर दुश्मनों को यह बता दोगो कि हम किस मार्ग से भागे है ? " वे कितने नीच थे । फिर भी चली बाई । दूसरे दिन तुम्हारे रूसियों ने पकड लिया लेकिन शीघ्र ही छोड़ दिया । उस समय मैने अनुभव किया कि अब मुझे अपने लिये कहीं एक घर वना लेना चाहिए । मैं स्वतंत्र बुलबुल के से इस जीवन में उब उठी थी । मैं थक गई थी , मेरे पंखो की शक्ति नष्ट हो चली थी धार मेरे परों की चमक मारी गई थी । हाँ , यह उपयुक्त । इसलिए मैं यहाँ से पहले गैलीसिया गई और फिर डोब जा पहुची । तब से मै घरावर यहीं रह रहोहलगभग पिल्ले तोम वपा से । मेरा एक पति था - मोल्डेचिया का निवामी । वह एक वर्ष पहले मा गया । और अब मैं ऐसा जीवन बिता रही है , एकासी । परन्तु यह पूर्ण रूम में गुफाफी नहीं है । वे लोग मेरे माथी है । " इतना कहकर उसने समु की श्रार राय का इशारा मिरा । तट पर भय पूर्ण शान्त की ! का क्हा एक त धेमा अस्पद ना गुनाई देता और गीत होगान्त हो जाता ।