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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८२

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१८५ बुढ़िया इज़रगिल जला जला कर कुछ ढूंढने का प्रयत्न कर रहे हों जिन्हें हवा तुरन्त बुझा देती थी । वे श्राग की नोली लपटों सी दिखाई दे रही थीं और उनमें कुछ रहस्य सा भरा प्रतीत होता था । " " क्या तुम्हें कुछ चमक दिखाई दे रही है ? ” इज़रगिल ने मुझसे पूछा । " क्या ? वे नीली लपट सी ? " मैने दूर मैदान की ओर इशारा करते हुए पूछा । "नीली ? हाँ वही .........." अच्छा तो वे अव भी चमक रही हैं । अच्छा, ठीक ! परन्तु अव वे मुझे दिखाई नहीं पड़तीं । अब ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो मुझे नहीं दीखतीं । " " वे चिनगारियाँ से पाती हैं ? " मैने उस बुढ़िया से पूछा । मैंने इन चिनगारियो के विषय में पहले भी कुछ सुना था परन्तु मै उस बुढ़िया से उनके विषय में सुनना चाहता था । ___ “ वे चिनगारियाँ दान्को के जलते हुए हृदय से निकल रही है । " उसने कहा - " पुराने जमाने में एक हृदय था जो एक वार फट गया और उसमें से लपटें निकलने लगीं । ये चिनगारियाँ उन्हीं लपटी से निकल रही हैं । मैं तुम्हें इसकी कहानी सुनाऊँगी । यह भी एक पुरानी कहानी है पुरानी, बहुत पुरानी । श्राज कल ऐसा कही नहीं होता - न वे वहादुरी के कारनामे ही है- न वैसे आदमी ही रहे और न बैसी कहानियाँ ही सुनने में पाती है । क्यों ?......... " तुम बता सकते हो ? ..........." नहीं तुम नही पता सक्ते ? ..... " तुम जानते ही क्या हो ? तुम नए लढके कुछ भी नहीं जानते ? हह ...... अगर तुम गुजरे हुए जमाने को अच्छी तरह से जानने की कोशिश करी तो वहाँ तुम्हें अपनी सत्र पहेलियों का उत्तर मिल जायगा .. .. मगर तुम लोग जाने का प्रयत्न ही नहीं करते और इसीलिए इस संसार में भली प्रकार जीना भी नहों जानते । क्या मैं नहीं जानती कि भाजकल मनुप्य कमे जीवन व्यतीत करते हैं ? श्रोह ! मैं जब देखती हूँ हालांकि प्रय मेरी आँखें इतनी तेज नहीं रही जैसी कि पहले थी । मैं देखती है . . .