पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८८

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पुड़ियाइजरगिल " तुम्हें मरना पड़ेगा ! तुम्हें मरना पड़ेगा ! " चे लोग चिल्लाये ! "जंगल में निरन्तर इन शन्दों की प्रतिध्वनि गूंजती रही । विजवी को घमक में जंगल का भयानक अन्धकार टुकड़े-टुकड़े हो उरता । दान्को ने उन लोगों को भोर देखा जिनके लिए उसने इतना कठिन परिश्रम किया था और पाया कि वे लोग जंगली पशुओं की तरह हिंसक हो उठे है । उन्होंने उसे चारों ओर से घेर लिया । उनमें से किसी के भी चेहरे पर मानवता का भाव नहीं था । उनसे दया की कोई प्राशा नहीं रही थी । तब दान्को के हृदय में शोध उमद श्राया परन्तु उन लोगों पर रहम कर उसने उस क्रोध को दवा दिया । वह इन लोगों को प्यार करता था और जानता था कि उसके विना वे सप नष्ट हो जायगे । इसलिए वह उन्हें बचाने के लिए न्यन हो उठा जिससे कि यह उन्हें किसी प्रामान मार्ग पर ले जा सके । और उसके नेत्री में यह व्यग्रता प्रवल रूप से चमक उठो । परन्तु यह देख कर उन लोगों ने समझा कि उसके नेत्र क्रोध से जल रहे हैं । क्रोध के कारण ही उसके नेत्र इस प्रकार चमक उठे हैं , इसलिए वे भेड़ियों की तरह सावधान हो गये, और उसके श्राक्रमण की प्रतीक्षा करने लगे । उन्होंने उसे चारों ओर से अच्छी तरह घेर लिया जिससे उसे पकड़ कर मार डालें । उनके विचारों को भांप गया । इससे उसके हृदय की यह व्यग्रता और चिन्ता की चमक और तोत्र हो गई क्योंकि उनके कृमध्नता पूर्ण विचारी ने उसे दुखी बना दिया था । " " जंगल में शोकपूर्ण ध्वनियाँ व्याप्त थीं । तूफान गरस रहा था और मूसलाधार पर्पा हो रही थी । " "मैं इन शादमियों लिये क्या कर सकता हूँ ? " तूफान के घी कार को दवा देने वाली भयंकर धाराज में दान्ने चिल्लाया । " अचानक उसने दोनों हाथों से अपना सोना पर पर फार वाला, अपना हदय बाहर निकाला और उसे हाथों में लेस सिर पर कर पा हो गया । यह सूर्य की वरद चमक रहा था - सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान । पारी और सामोशी छा गई सौर यह जंगल माना प्रेम की इस मागाल में प्रका