पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१८९

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१६२ घुढ़िया इजरगिल - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - - शित हो उठा । इस प्रकाश से डर कर अन्धकार जङ्गल की सघनता में जा छिपा और काँपता हुश्रा उस दुर्गन्ध पूर्ण दलदल में समा गया । वे मनुष्य आश्चर्य से मूर्ति की तरह खड़े रह गए । " पागे बदो ! " दान्को चिल्लाया और अपने प्रज्वलित हृदय के प्रकाश से मार्ग दिखाता हुश्रा आगे बढ़ा । वे उसके पीछे २ चले - मन्त्रमुग्ध की भाँति । जङ्गल में पुन सनसना हट व्यास होगई । वृक्ष श्राश्चर्य से अभिभूत होकर झूमने लगे । परन्तु उन दौड़ते हुए श्रादमियों की हर्षध्वनि में जगल का वह शोर इव गया । वे सय तेजी से भागे जा रहे थे । उस प्रज्वलित हृदय ने , जो एक अद्भुत दृश्य उ पन कर रहा था उन्हें बहादुर बना दिया था । अब भी थादमी गिर कर मर रहे थे परन्तु श्रय गिरते समय न तो वे रोते थे और न शिकायत करते थे । और दान्का श्रव भी सबसे श्रागे था । उसका हृदय निरन्तर प्रकाश फेंक रहा था । अचानक उन्होंने देखा कि सामने जगल खुल गया है । उसने उन्हें वाहर निकाल दिया और स्त्रय वहीं पीछे रह गया वसा ही सघन और शान्त । और दानको तथा उसके सब सायी खुली हुई रोशनी और साफ हवा मे श्रा गए । हवा या से निर्मल हो गई थी । उनके पीछे तुफान अब भी जङ्गल में गरज रहा था परन्तु यहाँ सूर्य चमक रहा था । मैदान जैसे गहरी साँसें ले रहा था । घाम के पत्तों पर वर्षा की वृ दें मोती की तरह चमक रही थीं शोर नदी सोने की सी धारा प्रतीत हो रही थी , शाम हो चली थी । नदी पर पड़तो हुई . उजते हुए सूर्य की किरण, उसके जल को लाल बना रही थीं उस रन की तरह लाल जो दान्को के निकाले हुए हृदय मे एक गर्म धारा की तरह यह ठठा था । " वोर और बहादुर दान्को ने अपने सामने फैले हुए विस्तृत घास के मैदान को गौर से देखा । वह इस स्वतन्त्र भूमि को श्रोर प्रसन्नता पूर्वक देगर म टठा । उसकी इस हमी में गवं भरा हुया था । और तब वह जमीन पर गिर पड़ा और मर गया । "