पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/१९२

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आवारा प्रमो १११ सुन्दर स्त्री है - देखने में सुन्दर - सिर्फ कुछ वगढ़ी ज्यादा है ........ तुम्हारा कंघा कहाँ है ? "

  • जैसे ही उसने कंधे को अपने लाल वालों के गुच्छे में राल कर उन्हें

सुलझाना चाहा , उसकी नाक पर बल पड़ गए और उसने गालियाँ देनी शुरू कर दी मचानक बात करते - करते , वह एक शब्द को मधूरा ही छोड़कर , खिड़की के धु धले शीशे में गौर से अपनी शकल देखने लगा । वाहर सामने ईंटों की दीवाल पर धूप चमक रही थी । रात धर्पा होने से दीवाल गीली थी और धूप उसके बाल रंग को और उज्वल बना रही थी । बरसाती पानी को वहाने वाले पाइप पर एक काला कौश्रा बैठा हुया चोंच से अपने पंख सँभाल रहा था । " यह लोटा कितना सराय है ! " शारका योजा और फिर अचानक कहने लगा - "उस काले कौवे को देखो । कैसा अपना हार कर रहा है । मुझे जरा सुई और धागा देना । अपने कोट का एक बटन सीना है । " वह कमरे में चारों तरफ हदसा फिर रहा था जैसे गर्म इंटों पर नाच रहा हो । उसने इतना ऊधम मचाया कि उसने मेरी मेन पर रखे हुए कुछ कागज उड़कर नीचेगिर पदे । - फिर खिड़की पर खड़े होकर , भटपटे सर में मुई चखाते हुप टसने पड़ा "पया कमी लोठिर काम का कोई राजा हुन्ना या ? " " तुम्हारा मरालय - लोयर -वयों, किसलिए पर रहे हो ? " " नी मजेदार बात है ! मैं सोच रहा था कि उसका नाम बाहिर या और संसार के मभी आलसी व्यक्ति ठमी के घंशज है । पलो पहले किसी होटल में पनकर चाय पी जाय । उसके याद हम लोग पादरियों के गिरजे में प्रार्थना सुनने चलेंगे धीर पादरिनों को देगे । मुझे पादरिने यदी अली बगो है । .. . और मोसेस्टिन्स ( दुरदर्शी ) का क्या मय है ? "