पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२००

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थावारा प्रेमी २०३ जैसे कि खूब मोटी वाजी विल्ली चूहे को देख रही हो । वह एकदम घबड़ा उठा थौर मेरी बाँह खींचता हश्रा तेजी से चर्च से बाहर निकल गया । . . "तुमने देखा कि वह मेरी ओर किस तरह देख रही थी ? भय से आँखें बन्द करते हुए उसने कहा । तब उसने जेब से अपनी टोपी निकाली , उससे अपने मुंह का पसीना पोछा और नाक चढ़ाई । __ "हे भगवान ! वह मेरी तरफ किस तरह देख रही थी .........जैसे कि मैं शैतान होऊँ । इससे मेरा हृदय इबने लगा था । " तब वह हँसा और बोला : " उसे हम लोगों का बड़ा बुरा अनुभव हुआ होगा । " शाश्का हृदय का बढ़ा दयालु था परन्तु उसके मन में लोगों के लिए दया को भावना तनिक भी नहीं थी । वह भिखारियों को खूब पैसे देता था और पूरे मन से देता था जितने मन से एक धनी व्यक्ति भी नहीं दे सकता । परन्तु वह इसलिए देता था क्योंकि दरिद्रता से उसे हार्दिक घृणा थी । दैनिक जीवन के साधारण दुखों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता था । वह उनकी यात फरसा धौर खूब हँसता था । ____ " तुमने सुना है ? मिश्का सिजोव को सजा होगई । " उसने उत्साह पूर्षक एक दिन मुझ से कहा - " वह जीविका को खोज में बहुत दिनों सक इधर उधर भटकता रहा और एक दिन उसने एक छाता चुराया और पकड़ा गया । यह चोरी करना नहीं जानता या । उन्होंने उसे यहीं पकड़ लिया । मैं उसी रास्ते से जा रहा था कि अचानक देखा कि वह पुलिस वाले के साय भेद की तरह चुपचाप चला जा रहा है । उसका पहरा पीला पर गया था और मुंह सुला हुआ था । मैंने उसे पुकारा - "मिरका , परंतु उसने जबाव नहीं दिया जसे कि वह मुझे जानता ही न हो । " हम एक दुकान में गए और शारका ने एक पाइंट मुरव्ये की मिटाई खरीदी । " मुझे स्वेपसा के लिए कुछ पेस्ट्री ( एक प्रकार की मिठाई ) भी