सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२०६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

आवारा प्रमो २०६ " मुझे नहीं मालूम . .. " नस्या उस पर अदालत में मामला चलाना __ चाहती थी परन्तु उसने तीन रूबल दे दिए और वह शान्त हो गई . . . .. . बेवकूफ कहीं की । " अचानक शारका उद्दल पा और घोला - " अब हमारे जाने का समय ___ हो गया । "कहाँ जाने का " - मेजवान ने पूछा । "हमें कुछ काम है, " शाश्का ने झूठ बोलते हुए कहा, " मैं शाम को फिर पाऊँगा । " उसने पाशा की थोर मिलाने के लिए हाय बढ़ाया परन्तु वह लड़की कुछ क्षणों तक उसकी उँगलियो की तरफ देखती रही जैसे कि उसमें उन्हें छूने का साहस न हो और वय उसने शाश्का का हाथ पकड़ कर इस तरह झकझोरा मानो उसे बाहर धरेख रही हो । हम बाहर प्राए । अहाते में सिर पर टोपी लगाते हुए शारका । युटयुदाया । "संतान ! वह लडकी मुझे पसन्द नहीं करती और मैं उसके सामने में जाता है । अब शाम को मैं वहाँ नहीं जाऊँगा । " उसके चेहरे पर पुरे भाव झलकने लगे और यह शरमा गया । " मुझे स्टेपता को छोड़ देना पाहिए, " उसने कहा, " यह अच्छा काम नहीं है । वह मुझसे दुगुनी यही है , मौर " ... " लेकिन जब तक कि हम महक के मोड़ पर पहुंचे यह पुनः पहले की तरह हम रहा था और बिना रोयो घारे बदा प्रसन्न होकर कहता जा . रहा था " वा, मुझे प्यार करती है । फूल की माह मेरी चौकसी करती है । सलिए मेरे भगगन , मेरी सहायता कर । यह मोच पर मुझे पड़ी लग्ना भाली है । कभी कभी तो मुझे उसका माप यहुल भरला लगता है . .. ... पनो नो के माप में भी वहा । यह सिता अद्भुत है । मेरे भाई , मैं तु - यतःताकि ये यो मुसीबत होती है - ये और । परन्त इवने