२१० प्राधारा प्रेमी । पर भी वे होती हैं । वे हमारे प्रेम की पूर्ण अधिकारिणी है । .. • लेकिन क्या उन्हें प्यार करना सम्भव है ? " ___ "इससे अच्छा ता यह होगा कि तुम कम से कम एक को ही पूरी तरह प्यार करो । " मैने सलाह दी । " एक - एक को ", उसने सोचते हुए कहा - " लेकिन केवल एक को प्रेम करने का प्रयत्न करना " वह दूर निगाह गढ़ा कर देखने लगा - नदी की उस नीली धारा के उस पार, पीले चरागाहों को , शरद ऋतु को हवा द्वारा उखड़ी हुई काली झाड़ियों को जो सुनहले रङ्ग की विरल पत्तियों से ढकी हुई थीं । इस समय शाश्का का चेहरा कोमल और विचार मग्न दिखाई दे रहा था । यह स्पष्ट था कि इस समय वह उन सुखद स्मृतियों में डूबा हुआ था जो उसके हृदय को प्रसन्नता से भर देती थीं जैसे सूरज की किरणें नदी की धारा को सुनहले रफ से भर देती है । " प्रायो, थोड़ी देर बैठलें ," पादरियो के मठ के पास एक पुलिया के , नजदीक रुकते हुए उसने कहा । श्रापमान में हवा बाइलों को भगाए लिए जा रही थी । चरागाह के मैदान पर उनकी छायाएं भाग रही थीं । नदी पर एक मछुया नाव के टूटे हुए पैदे की मरम्मत कर रहा था । " सुनो, " शाश्का वोला - " श्रस्तरखान चलें । " "किमलिए ? " " श्रोह , वैसे हो । या चलो मास्को चलें । " " लेकिन लिजा का क्या होगा ? " "लिजा अच्छा श्रा · श्रा । " उसने मेरी घाखों में सीधे देगा और कहा - " मैं अभी तक उसके प्रेम में पड़ा है या नहीं ? " " स्मिी पुलिस के सिपाही से पूछो । " मन जवाब दिया । यह पिलपिलाकर हम उठा - बिल्कुल बच्चे की तरह । उसने सूरज
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