पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२१३

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श्रापारा प्रेमी गलियों में या बाजारों में । मुझे हँसोड़ श्रादमी अच्छे लगते है --यहूदी और तातारी । देखो तातारी कितनी मस्ती से खुल कर हंसते है " यह अच्छी बात है कि वे स्टेज पर तुम्हे वास्तविक जीवन नहीं दिखाते, केवल वह दिखाते हैं जो विल्कुल एकाकी , अपरिचित सा और कृत्रिम होता है । जहाँ तक असली जीवन को दिखाने का प्रश्न है वे चुप्पी साधे रहते हैं । और इसके लिए चे धन्यवाद के पात्र है क्योकि हमारा अपना असली जीवन ही हमारे लिये बहुत है । लेकिन यदि वे तुम्हे सपा जीवन दिलाएँ तो यह पूरी तरह से असली और सत्य होना चाहिये और विना किसी दयाभाव के स्टेज पर वयों को भी अभिनय करना चाहिये क्योंकि जब वह अभिनर करते है ना यह सवा होता है । " लेकिन तुम तो उसे पसन्द नहीं करते जो बिल्कुल वास्तविक होता है । " " क्यों नहीं ? मैं पसन्द करता हूँ यदि यह रांचक हो तो । " सुर्य पुनः चर्पा के जल से धुले उम नगर पर चमकने लगा । हम लोग उस समय तक सदकों पर घूमते रहे जब तक कि गिरजे में माँध्य प्रार्थना के घरटे वजने शुरू नहीं हुए । शारका मुझे एक टूटे फूटे स्थान की ओर खींच कर ले गया । वहाँ एक फलो के वाग की चहारदीवारी थी जिसका मालिक रेन्किन नामक एक कर सरकारी कर्मचारी या - सुन्दरी लिजा का पिता । ___ " यहाँ मेरा इन्तजार करना , फरोगे न ? ” उसने मुझसे प्रार्थना की चौर विही की तरह उदल कर उस दीवाल पर चढ़ गया । उसने यहाँ एक मम्मे के सहारे 43 फर धीरे में मोरी यजाना गुरु किया । फिर अपनी टोगो को अत्यन्त प्रमसना और नम्रतापूर्वय उठाकर, यह एक लदकी में बातें करने लगा, जो मुझे दिखाई नहीं दे रहो यो । करे बैठा हुया यह इस