पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२१४

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२१६ आवारा प्रेमी प्रकार उछल कूद मचा रहा था कि मुझे यह भय हुआ कि कहीं नीचे न गिर पड़े । " नमस्कार , एलिजावेता याकोब्लेन्ना ? " मैं दीवाल की दूसरी तरफ से श्राने वाले जवाव को तो नहीं सुन सका परन्तु दो तख्तों की दरार में से मुझे , फूलोंदार एक फ्राक, एक सफेद हाथ की पतली कनाई जिसमें मालियों की एक कैंची थी दिखाई दी । ___ " नहीं, " शाश्का ने उदास स्वर में परन्तु मूठ बोलते हुए कहा "मैं अभी तक उसे पढ़ने का अवसर नहीं निकाल पाया हूँ । तुम जानती हो मैं कितनी सख्त महनस करता हूँ और मैं रात को ही तो काम करता हूँ । दिन को मुझे इसीलिये सोना पड़ता है और मेरे साथी भी मुझे ठीक तरह से श्राराम नहीं करने देते । जव मैं काम करते समय एक के बाद एक अक्षर जमाता जाता हूँ तो मुझे एक मात्र तुम्हारा ही ध्यान रहता है । हाँ , सचमुच । परन्तु मुझे टाइप की पूरी लाइनें बनाना अच्छा नहीं लगता । कविता पढ़ने में अधिक श्रासान होती है क्या मैं नीचे ना जाऊँ ? क्यों नहीं ? नेक्रोसोव ! हाँ अच्छा, बहुत, सिर्फ वह प्रेम के विषय में अधिक नहीं लिखता । तुम गुस्सा क्यों हो ? एक मिनट उड्गे , क्या इसमें कोई बुरी बात है ? तुमने मुझसे पूछा कि मुझे क्या पसन्द है और मैंने कहा कि मुझे सबसे अच्छा प्रेम लगता है - हरेक प्यक्ति इसे ही पसन्द करता है, ठहरो " उसने वोलना बन्द कर दिया और उस दीवाल पर एक खाली वोरे की तरह लटक गया, फिर सीधा बैठ फर वह वहाँ एक दुखी और चिन्तित फौवे को तरह कुछ मैकिन्दों तक बैठा रहा और अपनी टोपी की नोंक से अपने घुटने की पपपपाता रहा । दूयते हुए सूर्य की सुनहली किरणों में