पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२१६

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आवारा प्रेमी २१६ इस प्रकार मेरी अनुचित प्रशंसा कर शाश्का मुदा और तेजी से नगर की ओर चल दिया । उसके हाथ जेबो में पड़े हुए थे, उसकी टोपी सिरके पिछले हिस्से पर मुकी हुई थी । वह सीटी वजाता हुश्रा चला रहा था । वह बहुत पतला और तेज मालूम पड़ रहा था - एक सुनहली सिरे वाली कोल की तरह । मुझे दुख था कि वह स्टेपखा के पाल वापिस जा रहा था परन्तु अब मै जान गया था कि उसे कोई न कोई ऐसा अवश्य चाहिए जिसे वह प्यार करे । उसे अपने हृदय की उदार भावना- प्रेम कों किसी न किसी को अवश्य देना है । सूर्य की लाल किरण उसकी पीठ पर पड़ रही थीं । ऐसा मालूम हो रहा था मानो वे उसे श्रागे की ओर धकेल रही हो । जमीन ठंडी हो रही थी , सेत सुनसान थे, नगर से जैसे धीमी धीमी मन्द ध्वनि उठ रही थी । शाश्का नीचे झुका, एक पत्थर उठाया और हाथ का झटका देकर दूर फेंक दिया । फिर मेरी तरफ चिल्ला कर वोला - - " अच्छा, फिर मिलेंगे । "