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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२२

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मालवा यरावर उठ और गिर रही थी। वासिली की आँखें फमी समुद्र की ओर उठती और कभी उसको छाती पर खेलने लगी जो उसके इतने नजदीक थी। उसने उसके होठों को चूमा, धीरे से, यिना किसी नन्दी के, अपने होठों को जोर से चाटते हुए जैसे यह गर्म-गर्म हलुवा खा रहा हो जिस पर मक्खन की मोटी तह जमी हो। इसी तरह लगभग तीन घन्टे बीत गए । जब सूरज समुद्र में दूयने लगा तो वासिली ने सुस्त आवाज में फहा-"मैं जाकर केतली को भाग पर घदा । हमारा मेहमान जल्दी ही उठ बैठेगा।" मालवा उससे दूर हट गई, एक मोटी-ताजी थवाई हुई पिली को तरह । सुस्ती से वह बे-मन से उठा और झोपड़ी में गया । उस औरत ने अपनी जरा सी उठी हुई पलकों में से उसे नाते देखा और गहरी सांस ली जैसे कोई भारी बोझ को फेंक कर सांस लेता है। कुछ देर बाद चे तीनों भाग के पास बेठे हुए चाय पी रहे थे । ह्यते हुए सूरज ने समुद्र को चमकीले रङ्गों से भर दिया था । हरी लहरों में नीले और लाल रग झलक रहे थे। यासिली ने एक सफेद प्याले में चाय की चुसकियां लेते हुए अपने बेटे से पूछा कि उनके गाँव में क्या हालचाल हैं और धपनी बारी भाने पर अपने गाँव की बीती हुई बातें सुनाई। मालवा उनको यातचीत को यिना घोच में योले चुपचाप सुनती रही। "अच्छा, सो पुराने किसान घर पर शव मी वैसे ही रह रहे हैं, तुम कहते हो ?" पासिली ने पूछा। ____हा, किसी न किसी सरह दिन काट रहे है ।" याकोव ने जवाब दिया। ___हम किसानों को ज्यादा नहीं चाहिए, क्यों, पाहिए ? मिर के उपर एक हत्त, साने के लिए ययेष्ठ भोग्न और छुट्टियों वाले दिन योदका का एक ग्लास, परन्तु हमें यह भी नहीं मिलना । क्या तुम मोपरी हो कि मैं घर दोदता एगर हमारे गुजारे के लिए यहाँ काफी पैसा होता ? घर पर में