पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२३८

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सेमेगा कैसे पकड़ा गया सेमेगा एक सराय में मेज के सामने अकेला बैठा हुआ था । उसके श्रागे वोदका का एक श्रद्धा और पन्द्रह कोपेक को कीमत का पका हुआ गोरा रखा था । इमारत के सबसे नीचे वाले कमरे में , जिसकी मेहरावदार छत धुए में काली पद गई थी , तीन वत्तियों जल रही थीं - एक शराब बेचने के स्थान के ऊपर तथा दो कमरे के बीचॉयोच । घुए से हवा घुट रही थी जिसमें धुंधली काली शकल इधर से उधर तेरती हुई सी घूम रही थीं । वे यहाँ ऊँची गावाज में शोरोगुल मचीती हुई तार्ने श्रजाप रही थीं और साथ हो माथ चातें करती हुई कसमों को झड़ी लगा रही थी क्योंकि ये यह जानती थी कि यहाँ वे कानून की पफर के बाहर थीं । वाहर पतमद के अन्त में चलने वाला भयानक तूफान गरज रहा था । चिपकने वाले बरफ के वदे यड़े टुकड़ों की वर्षा हो रही यो । मगर कमरे के भीतर मौसम गर्म था और चहल पहल से मर रहा था । वहीं एक मन भारनी सुन्दर गन्ध छा रही थी । मेमेगा धुप में घोर गदाए वरापर दरवासी की तरफ देख रहा था । भी पिपी को भीतर लेने के लिए दरवाजा मुलता था तो उसकी बात चमड टटतो थी । जय ऐसा होता तो यह सामने की तरफ जरा मा मुल जाता या प्रौर भी यमी नए पाने पाले का निरीशरा करने के लिए अपने हाय को जरा RI ऊपर उठा कर अपना चेहरा छिपा लेता था । और ऐसा का एक विप कारपश करता था ।