२३८ सेमेगा कैसे पकड़ा गया जव वह नए आने वाले का पूरा निरीक्षण कर लेता और अपने मा को , जिस तरह भी वह चाहता था , सन्तुष्ट कर लेवा , तो वोदका का , ग्लास भरता और गटक जाता , फिर लगभग आधे दर्जन गोश्त के टुकड़े भी बाल उठाकर मुंह में भर लेता और धोरे धीरे चबाता रहया ऐसा का समय वह अपने होठों से श्रावाज करता और अपनी सिपाहियान ढंग मुछों को चाटता जाता । उसके विशाल विखरे वालों वाले सिर की छाया नम भूरी दीवाल पड़ कर एक विचित्र सा उपस्थित कर रही थी । जब वह अपना मुंह चन या तो वह छाया अजीव तरह से हिलने लगती थी मानो किसी की त . बराबर इशारा कर रही हो । और उसे बदले में जवाब न मिल रहा हो । सेमेगा का चेहरा चौड़ा, ऊँची हहियों वाला और बिना दाढ़ी . था । आँखें बढ़ो और भूरी थीं जिन्हें वह अक्सर सिकोढ़ते रहने का श्रा या । आँखों के ऊपर धनी काली भौंहें छा रहीं थीं और बाई भौंह के ऊप लगभग उसे छूता हुआ शुधले रग के घु घराले वालों का एक गुच्छा लु रहा था । कुल मिलाकर सेमेगा का चेहरा ऐसा नहीं था जिस पर विश्वास कि ना सके । उसके चेहरे को कठोर हड़ता में एक घबड़ाहट की छाया भरी हु थी . एक ऐसा माय जो इन व्यक्तियों और इस स्थान पर कमो भी नह दिखाई देता था । वह एक फटा हुप्रा ऊनी कोट पहने हुए या जो कमर पर एक रस्ती मे कम लिया गया था । उपको बगल में उसकी टोपी और दस्ता रखे थे पीर कुर्मों के पोछे एक मोटो , लम्बी लाठो रखी हुई थी जिसके मिो पर जद को छाट फर मुठ मो यना लो गई थी । इस तरह बैठा हुया वह मजे से भोजन कर रहा था और जैसे हा उसने और शरार मगानी चाही कि मटके के साथ दरवाजा खुला और एक गोल योर चियदों में लिपटी हुई मो चोज लुढ़कती हई भीतर घुस श्राई तो
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