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मालवा "मैं यहाँ समुद्री चिड़िया की तरह आजाद हूँ और जहाँ चाहूँ वहाँ उद सकती हूँ। कोई मेरा रास्ता नहीं रोक सकता" कोई मुझे छू नहीं सकता।" "और अगर वे तुम्हें छुयें तो ?" दिन में जो कुछ हो चुका या उसे याद करते हुए वासिली ने मुस्करा कर कहा। "अगर वे छूयेंगे."मैं बदला दूंगी," मालवा ने धीमी आवाज में जवाब दिया, इसकी आँसों की चमक बुझ गई थी । वासिली दयाभरी हंसी इंसा। “उह ! " तुम शिकारी विल्ली ! हो मगर कमजोर ! तुम एक औरत हो और औरत को तरह बात करती हो । घर, गाँव में, एक श्रादमी औरत को अपनी जिन्दगी के साथी के रूप में चाहता है, मगर यहां यह केवल खेलने के लिए है।" पण भर रुक कर वह फिर योला-"पाप करने के लिए।" उन्होंने वातें यन्द करदी" याकोव ने एक उदास गहरी साँस लेकर "समुद्र इस तरह दिखाई देता है जैसा इसका छोर हो न हो। उन तीनों ने जल के उस विशाल विस्तार की तरफ देखा जो उनके सामने फैला हुआ था। "अगर यह सय जमीन होती !" अपने हाथ फैलाते हुए याको बोला-"और काली नमोन जिसे हम जोत सकते !" "ओह, सुम यह पसन्द करते हो ?" वासिनी ने प्रसरता से इसते हुए अपने लड़के की योर सहमत होकर देखते हुए कहा जिसका घेहरा सपन व्यक्त को हुई मिलापा के कारण चमक उठा था । लड़के को जमीन के प्यार करते हुए देखकर उसे यहा सन्तोष हुधा । सम्भव है जमीन का मोह उसे यापिस गोप चुला ले-उन श्राकपयों से दूर जिनसे निंच कर वह यही भाया है। और यासिनी-मालवा के साथ अकेला रह जायगा और काम पहले की तरह चलने लगेंगे। ____ "हो, उन ठीक हो, याकोर ! रिसान यही चाहता है। किमान