पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२५

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मालवा "मेरे कुचों पर तरस मत खाना, इन दो सफेद हंसों पर!" "तुम सुन रहे हो!" याकोव उस ओर, जिधर से ये शब्द आ रहे । ये, जाने के लिए उठा और बोला : "तो तुम खेत की देख-भाल न कर सके ?" उसने वासिलो को कठोर भावाज में पूछते सुना। याकोव ने पकित नेत्रों से वाप की ओर देखा और वहीं खड़ा रह गया। लहरों के स्वर में डूब जाने से अब उस परेशान करने वाले गाने की सिर्फ एक बाघ कहीं ही उनके कान तक पहुंच रही थी। "ओह, मैं अपनी आखें बन्द नहीं कर सकती ....'एकाकी यह रात" "प्राज गर्मी है !" वासिली ने बालू पर लेटते हुए बुझती सी आवाज में कहा-"राख हो गई, परन्तु अव भी वैसी ही उमस है ! किसना खराब "यह बालू गर्म है .. .. वह दिन में गर्म हो गई थी......" दूसरी तरफ मुड़ते हुए याकोव लड़खड़ाती धावाज में बोला। "सुनो ए । तुम किसलिए हंस रहे हो ?" उसके बाप ने कठोरता से पूछा। "मैं ? इसने की बात ही क्या है ?" याकोव ने भोलेपन से पूछा । "बाव तो कोई नहीं थी !..." दोनों चुप हो गए। लहरों के शोर से भी ऊपर उठती हुई ऐसी आवाजें सुनाई दी जो या सो गहरी सांस थीं या किसी की प्यार भरी बुलाने वाली आवाजें थीं। दो हफ्ते वीच गए। फिर इववार पाया और फिर वासिनी लेगोस्तयेव अपनी झोपड़ी के पास बालू पर लेटा हुश्रा समुद्र की ओर देख रहा था और मालवा का इन्तजार कर रहा था। निर्जन समुद्र हंस रहा था और सूर्य के प्रतिविम्बों से खेल रहा था । लहरों के मुण्ड के मुण्ड पैदा होकर बालू है