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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२६

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माजवा की तरफ दौड़ते, उसे अपने छीटों से नहला देते और फिर पीछे को खिसक कर समुद्र में खो जाते । हर चीज वैसी ही थी जैसी कि चौदह दिन पहले यी सिवाय इसके कि पिछली बार वासिली ने पूर्ण विश्वास के साथ मालवा के थाने की प्रतीक्षा की थी; श्रव वह अधीरता से ठमकी प्रतिज्ञा कर रहा था। वह पिछले इववार को नहीं पाई थी-उसे श्राज पाना ही चाहिये । इस वारे में उसे कोई सन्देश नहीं था परन्तु वह उसे देखने के लिए मरा जा रहा था । आज याकोब याषा नहीं डालेगा। दो दिन पहले कुछ मल्लाहों के साथ वह जान लेने के लिये पाया या और कह रहा था कि वह इववार को अपने लिए कुछ कमीजें खरीदने शहर जायगा। उसे पन्द्रह रूबल मामिक पर मछुए का काम मिल गया था, कई घार महली पकड़ने बाहर जा चुका था और श्रय स्वस्थ और प्रसस दिसाई देने लगा या । दूसरे मछुयों की सरह उसमें से मछली की गन्ध पाने लगी थी और दूसरों की ही तरह वह भी गन्दे और फटे कपड़े पहने रहता था। पासिली ने गहरी सांस ली और अपने बेटे के बारे में सोचा। "मुझे उम्मीद है उसका याल भी धोका नहीं होगा," उसने अपने श्राप से कहा-"वह विगद जायगा और फिर शायद घर जाना पसन्द नहीं करेगा " ऐसी हालत में मुझे जाना पड़ेगा।" समुद्र पर समुद्री चिरियों के अतिरिक्त और कोई भी नहीं था। जय सब थनेक काले विन्दु रेतीली किनारे की संफरी पटो के सहारे, जो समुद्र को श्राकाश से अलग कर रही थी, चलते हुए दिखाई देते और गायब हो जाते । परन्तु एक भी नार नजर नहीं आई दादांशि सूरज की किरणें समुद्र पर बिल्कुल सीधी पर रही थीं। मालवा सदेव इससे यहुत पहले ही पाजाया करती थी। दो समुद्री पिरियां ऊपर हवा में इतनी भयहरसा मे बर रही थीं कि उनके नीचे हुए पज हवा में उपर उड़ते और उनकी भयर चोखे महरों के मधुर सहीत में कर्फश-पनि उत्पक कर देवी । बहरों के उस मधुर-समीर से जो चाकाश के उस धमकते हुए शान्त पावावरर में अपनी लय मिला