पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२७

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मालवा देता, ऐसी ध्वनि उत्पन्न होती मानो सूर्य की श्राह्लाद से भरी हुई किरणे जल के उस विशाल असीम विस्तार से खेल रही हो। वे चिड़ियाँ तेजी से नीचे पानी की तरफ झपटीं । उन्होंने श्रय भी एक दूसरे पर क्रोध और पीड़ा - से तिलमिला कर चोंचों से श्राघात किए और फिर एक दूसरे का पीछा करती हुई ऊपर हवा में उड़ गई । और उनकी अन्य साथिने-एक पूरा मुन्ड का सुन्ड-स्वच्छ चंचल हरे जल में डुबकियों लगाती हुई, भूखों के समान मछलियों का शिकार करती रही मानो इस युद्ध से उनका कोई सम्बन्ध न हो। समुद्र निर्जन हो रहा । वे परिचित काले बिन्दु उस सुदूरवर्ती किनारे पर अव दिखाई नहीं दे रहे थे। "तुम नहीं पा रही हो " वासिनी जोर से बोला, "अच्छा, मत श्रामो ! सुमने समझ क्या रखा है ? ....." और उसने नफरत से किनारे की ओर थूका । समुद्र हसने लगा। पासिली ठा और खाना बनाने के इरादे से झोपड़ी में गया परन्तु उसे भूख नहीं थी इसलिए वह उसी पुरानी जगह पर लौट श्राया और फिर लेट गया। "अगर कम से कम सर्योमका ही पा जाता !" उसने मन ही मन कहा और स्वयं को सोझका के विषय में सोचने के लिए मजबूर करने लगा"वह वास्तव में भयङ्कर है ! हरेक पर हँसता है । हमेशा लड़ने के लिए तैयार रहता है। सांड़ की तरह वाकयवर है। कुछ पढ़ा-लिखा भी है। कई मुरकों में धूम आया है ....."परन्तु शराबी है । वह अच्छा साथी है, हालांकि..."सव और उस पर दिल हार बैठो हैं और हालांकि उसे यहाँ श्राए ज्यादा दिन है. नहीं हुए हैं, फिर भी वे सब की सब उसके पीछे दौड़ रही हैं। सिर्फ मालवा उससे दूर रहती है....."वह यहाँ नहीं थाई । वह कितनी अक्खड़ औरत है ! शायद नाराज है क्योंकि मैंने उसे मारा था ? लेकिन क्या उसके लिए वह नई बात थी, दूसरों ने भी उसे पीटा होगा"और किस सरह ! और क्या मैं उसे अघ नहीं मारूंगा"