पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२६२

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दो नन्हें बच्चों की कहानी २५५ " चाची को फिर मालूम हो जायेगा और वह फिर मारेगी - जैसे कि उसने उस बार मारा था , " काका ने शंकित होकर कहा मगर उसके स्वर से यह प्रतीत हो रहा था कि वह होटल की गर्मी और श्रानन्द के आकर्षण से अपने को वंचित नहीं करना चाहती । __ " हमें मारेगी ? नहीं, नहीं मारेगी । हम एक ऐसे होटल में चलेंगे जहाँ हमें कोई भी नहीं जानता होगा । " " सच ? "काका ने आशान्वित होकर धीरे से कहा ! " at देख , अव हमें यह करना है : सबसे पहले तो हम पाठ कोपेक फा मसालेदार गोश्त, और पाँच कोपेक की सफेद डवल रोटी खरीदेंगे । यह कुल तेरह कोपेक को हुई । फिर तीन २ कोपेक वाले दो मोठो रोटो के टुकड़े लेंगे - छः कोपेक । अव कुल उन्नीस कीपेक हुए । फिर छः कोपेक वाली चाय बैंगे : उसमें से चौथाई तेरे लिए होगी । जरा सोच तो सही ! और तव हमारे पास बचेंगे " __ मिश्का रुका और खामांश हो गया । काका ने उसकी तरफ गम्भीर

- प्रश्नसूचक मुद्रा से देखा ।

"यह तो बहुत ज्यादा खर्च हो जायेगा, " लड़की ने सहमते हुए कहा । " चुप रह ! ठहर ! यह इतना ज्यादा नहीं है । दर असल यह तो बहुत कम है । हम पाठ कोपेक का माल और सायेंगे । कुल तेतीस कोंक का । श्रगर हम ऐसा करें तो बिल्कुल ठीक रहेगा । आज पहरा दिन है । न ? तो हमारे पास बचेगा अगर यह सब मिलाकर चौथाई ल्बल हो जाता है तो दस कोपेक वाले पाठ सिक्के " और अगर तेतीस होते हैं सो दस कोपेक वाले सात सिक्के और कुछ ऊपर बच रहता है । देगा कितना बघ रहेगा ? यह इमसे ज्यादा की और क्या उम्मीद करती है, चुल कहीं की ! घन ! जल्दी कर " हाय में हाय टाका दोनों फुटपाथ पर बलते ऋदते चल दिए । याफ उनकी आंखों में भरकर उन्हें पन्धा यनाए दे रही थी । रहरह कर यरफ का