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मालवा और इस तरह एक क्षण अपने बेटे के और दूसरे पण सयोमका के, परन्तु ज्यादातर मालवा के बारे में सोचता हुशा वासिलो बालू पर लेटा रहा और इन्तजार करता रहा । उसकी चिन्ता धीरे धीरे एक काले सन्देह में बड़ने नगी और वह उसे दूर हटाने की कोशिश करता रहा। और इस तरह सन्देह ' को अपने से भी छुपाते हुए वह शाम स इन्तजार करता रहा । कमी पड़े होकर बालू में इधर-उधर चहल-कदमी करता और कभी फिर लेट जाता। समुद्र के ऊपर अंधेरा छा गया था। परन्तु वह अब मी दूर निगाह गडाए नाव के आने का इन्तजार कर रहा था। मालवा उस दिन नहीं पाई। भीतर लौटते हुए दुखी होकर वासिली ने अपनी तकदीर को कोमा जिसकी वजह से वह शहर नहीं जा सकता था। बार-बार घोंघते हुए यह सोच हो रहा था कि उसे पतवारों को छपपाट को श्रापाज़ सुनाई दी। वह उछल कर झोपड़ी के बाहर भागा। शॉलो पर हाय का माया कर उसने चंचल काले समुद्र की ओर देखा । किनारे पर, मदली पकड़ने वाली जगह पर, दो स्थान पर भाग जल रही यो परन्तु समुद्र निर्जन था। "धन्दी वान है, डायन !" वह धमकाते हुए बनाया और फिर भीतर श्राफर गहरी नींद में सो गया। परन्तु इधर महली पकरने वाली जगह यह घटना घटी। __ याकोब सुबह जल्दी उठा। अभी धूप में ज्यादा गर्मी नहीं आ पाई थी और समुद्र की भोर से उरडी ताजी हवा शा रही थी । वह नहाने के लिए ममुर के किनारे गया शोर वहीं उमने मालवा को देना । यह ममलो पकाने पालो एक नाव के पिछले हिस्से पर येठी अपने गीले बाल फार रही यो । उसके नंगे पैर नाय की पगल में लटक रहे थे। याकोब रफा और अजीब तरह से उसकी शोर घूरने लगा। मालया का सूती दलाउज, जिनको दाती के पटन गुले हुए थे, एक कन्धे पर से उतर गया था और यह कन्या मापा मफेद और पाकर्षक लग रहा था।