पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/२९

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मालवा ____ बहरे नाव के पिछले भाग से टकरा कर नाव को ऊपर उछाल रही थीं जिससे मालवा कभी सो ऊपर उठ जाती और कमी इतने नीचे चली जाती कि उसके पैर पानी को लगभग छूने लगते । "क्या तुम नहा ली ?" याकोव ने जोर से उससे पूछा। उसने अपना चेहरा उसकी तरफ मोड़ा, एक झलक उसे देखा और बाल काढ़ते हुए जवाब दिया : "हाँ ....."आज तुम इतनी जल्दी कैसे उठ बैठे ?" "तुम तो मुझ से भी पहले उठी थीं।" "क्या तुम मेरी नकल करोगे ?" याकोव ने कोई जवाब नहीं दिया। "अगर तुम मेरी नकल करोगे," उसने कहा, "वो सम्भव है तुम्हें अपनी खोपड़ी से हाथ धोना पड़े !" ___“ोह ! यह कितनी भयङ्कर है !" याकोव ने हंसते हुए जवाब दिया और रेत पर बैठकर नहाने लगा। उसने अपनी अजली में पानी भरा, मुंह पर छींटे मारे और उसकी ताजगी से प्रसन्न हो उठा । फिर अपनी कमीज के किनारे से मुंह और हाथ पोछार उसने मालवा मे पूछा : ___ "तुम मुझे हमेशा डराती क्यों रहती हो?" "और तुम मुझे धूरते क्यों रहते हो ?" मालवा ने कड़ाई से जवाब दिया। याकोव को याद नहीं पाया कि उसने वहाँ रहने वाली दूसरी औरतों को जिमनी बार देखा है उससे कमी भी अधिक यार मालवा की ओर देखा हो परन्तु अचानक वह वोल ठठा: । "तुम इतनी लुभावनी जो लगती हो । मैं तुम्हें घूरने से अपने को रोक नहीं पाता।" "अगर तुम्हारा बाप तुम्हारी हरकतों के बारे में सुन लेगा तो वह सुम्हारी गर्दन मरोस देगा!" मालवा ने उसकी तरफ एक मकारी और नौती भरी हुई नजर फेंकते हुए कहा ।