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मानघा याकोव हँसा थोर नाव पर चढ़ गया । यह नहीं जानता था कि उसकी हरकतों से मालवा का क्या मतलब था परन्तु जर वह कह रही है __वो वह उसको तरफ पुरी तरह से जरूर घूरता होगा। यह ढीठ हो टठा 4 "मेरे बाप से क्या मतलब" उसने उसकी बगल में पक रस्से पर ___बैठते हुए कहा-"क्या उसने तुम्हें सरीद लिया है या कोई और पात है?" मालवा के घरावर बैठे हुए उसने उसके खुले कन्धे, श्राधी खुली हुई छाती और उसके पूरे शरीर पर-जो इतना ताजा सौर स्वस्थ राया समुद्र की गन्ध से परिपूर्ण था-नज़र दौशाई । "श्रोह तुम कितनी खूबसुरत हो !" उसने प्रेम से अभिमृत होकर कहा। "लेकिन तुम्हारे लिए नहीं !" माला ने बिना उसकी भोर देखे वीखा जबाव दिया और अपने कपड़े भी ठीक नहीं किए। ___याकोष ने गहरी सांस ली। उनके सामने समुद्र फैला हुया था-सुयह को धूप में इतना सुन्दर कि जिसका वर्णन नहीं किया जा मता। छोटी, सेल्ती हुई लहरें तो हवा की धीमी गांग से उपज हो रही थी धीरे धोरे नार के अगले हिस्से से टकरा रही थीं। दूर समुद्र पर पाहार का उभरा हिस्सा दिखाई दे रहा थाउसकी मसमली छाती पर पदाचार के निशान की तरह और नीले प्रकाश की पृष्ठभूमि के सामने वह लहर एक पगली रेना के समान पहा था। उसके सिरे पर बैंधा हुना लगल फपहा या में पार करावा या दिसा दे हा था। हो, मेरे पच्चे!" यासोर की मोर चिना दे हर माल्या चोली- "म धारक हो मरुतो परन्तु में गुजारे लिए नहीं है.... शिपीने में परीदा नहीं है और न मैं तुम्हारे पार ने बंधी । मैं अपनी मर्जी के मुतायिक रहती हूँ... "परन्तु तुम मंगे घोर गाने को छोगिश मठ करो पोंकि मैं गुम्पारे और वासिली ऐ बीच में नहीं बना पाती...... में किमीभी सरह का भगता नहीं ".."मुम मेरा मनर समझ र दोन?"