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पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/६४

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माजमा ६५ "इससे वह मर जायगा इसका यही नतीजा होता है, यह शाजाद जिन्दगी भयहीन ! और तुम भी से ही हो जायोगे ...... " याकोव ने संक्षेप में उत्तर दिया : " नहीं में नहीं बनूंगा । " " तुम नहीं बनोगे ? " बासिनी ने स्योरी पढ़ाकर कहा - " मैं जानता है कि में किस बारे में बात कर रहा हूँ . . .. तुम्हें यहाँ पाए कितने दिन हुए है ? यह तीसरा महीना है ! जल्दी ही तुम्हारे घर लौटने का समय था जायगा । क्या तुम्हारे पास घर ले जाने ने लिए काफी पैसा होगा ? " उसने गुस्से से अपना प्याला उठा लिया , मुंह में शराय उदेली , अपनी हथेलियों में दाड़ी समेंटो और उसे इतनी तास्त से खींचा कि उसका सिर भी नीचे मुक गया । " इतने थोदे समय में में ज्यादा नहीं बचा सका, याकोव चोला । " अगर यह बात है तो तुम्हारे यहाँ रहने से कोई फायदा नहीं । गाँव, घर वापस चले जालो ।" याकोष मुस्कराया परन्तु बोला कुछ नहीं । "तुम यह यजीव शकल क्यों यना रहे हो ? " अपने बेटे की सामोशी से विदकर वासिली ने गुस्से से पूछा । " तुम इसने की हिम्मत कैसे करते हो जप मुम्हारा पाप तुमसे याव पार रहा है ! होशियार रहो ! तुमने पहुत जल्दी भाजाटो लेना शुरू कर दिया ६ ! मुझे तुम्हारे जंजीर टालनी पड़ेगी । " __ याकोप ने थोड़ी सी गराय उप्रेती और पी गया । चाप को फटकार ने उसके गुस्से को नजित कर दिया था परन्तु उसने अपने ऊपर का कर लिया और लोकद पद कहने को मोच रहा था उसे बचा गया , क्योंकि ऐमा पर पहचाप के गुस्से को और ज्याश भदकाना नहीं चाहता था । सब यात गो यह यो कि पार पाप को चौतों में कठोर चौर मर घमा पेपर घर गया था । पद देयकर दि बेटे ने बिना उम्प दिपायनरी यार शराब पी लो है पारिलो और भी जिय हो उठा ।