पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/७

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मालवा इस आवाज से चौंककर बालू पर बैठी हुई समुद्री चिनियाँ चौकन्नी होकर खड़ी होगई। "ए-हो-श्रो !" नाव से मालवा की गूंजती हुई आवाज आई। "तुम्हारे साथ वह कौन है ?" जवाब में एक ही हसी सुनाई दी। "खूबसूरत बला!" नफरत से थूकते हुए-वासिली सॉस रोकक बड़बड़ाया। वह यह जानने के लिए मरा जा रहा था कि मालवा के साथ ना में कौन है । सिगरेट बनाते हुए वह गौर से पतवार चलाने वाले की गर्दन और पीठ को देखने लगा। उसे पतवारों की छपछपाहट की आवाज साप सुनाई दे रही थी। उसके पैरों के नीचे वालू खिसकने लगी। "वह तुम्हारे साथ कौन है ?" वह चीखा, जव उसने मालवा के सुन्दर चेहरे पर एक विचित्र और अपरिचित मुस्कराहट देखी। "इन्तजार करो और देखो!" वह हंसती हुई चिरुलाई । पतवार चलाने वाले ने किनारे को ओर अपना चेहरा मोदा और वासिनी को देखकर हंस पड़ा । __चौकीदार घुर्राया और यह सोचने की कोशिश करने लगा कि यह अजनवी कौन हो सकता है। उसका चेहरा तो परिचित सा लग रहा है। "जोर से चलाश्रो!" मालवा ने श्राज्ञा दो। खहरे नाव को आधी के लगभग किनारे पर खींच लाई । नाव एक तरफ को सुकी और बालू में अब गई । लहरें वापस समुद्र को खौट गई। पतवार चलाने वाला नाव से बाहर कूदा और बोला : "हलो, फादर" "याकोव !" वासिनी घुटती हुई आवाज में बोला, जिसमें सन्तोष के स्थान पर आश्चर्य की ध्वनि अधिक थी। दोनों ने एक दूसरे का प्रालिङ्गन और चुम्बन किया-तीन बार-होठों और गालों पर । वासिनी के चेहरे के भावों में खुशी और परेशानी दोनों की झलक थी।