पृष्ठ:गोर्की की श्रेष्ठ रचनाएँ.djvu/८

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मालवा ....... ."मैंने देखा और देखता चला गया...."थौर मेरे हृदय में मनमनी सी उठने लगी। मुझे श्राश्चर्य हुआ कि यह क्या है.............. अच्छा, तो तुम थे ? यह कौन सोच सकता था ? पहले मैंने सोचा कि यह सयेमिका है परन्तु फिर मैंने देखा कि वह नहीं है। और वह तुम निक्ले" कहते हुए वासिलो ने एक हाथ से अपनी दाढ़ी थपयपाई और मरे से इशारे करने लगा। वह मालवा को देखने के लिए भरा जा रहा था परन्तु उसके बेटे की हंसती हुई श्रीखें उसकी ओर घूमी और उनकी चमक ने उसे सन्देह में डाल दिया। उसका वह सन्तोप, जो इतने सुन्दर और स्वस्थ लड़के को अपने बेटे की शकल में पाकर उसे हुआ था अपनी नी फी उपस्थिति से उत्पन्न हुई वेचैनी से नष्ट हो गया। यह याकोव के सामने खड़ा एक पैर से दूसरे पैर पर भार देता हुघा, विना जयाय का इन्तजार किए उससे सवाल पर सवाल पूछता चला जा रहा था। उस समय सब चीजें जैसे उसके दिमाग में ठलट-पलट हो रही थीं, जब उसने मालवा को हंसते हुए मजाक के स्वर में कहते सुना : ___"वहाँ खुशी से नाचते हुए मत खड़े रहो । उसे झोपड़ी में ले जाकर कुछ खिलायो पिलायो!" वह उसको भोर मुड़ा । मालवा के होठों पर एक चिदाने पालो मुस्कान खेल रही थी। यामिली ने उसे इससे पहले इस तरह मस्कराते कभी नहीं देना था। उसका सारा शरीर भी जो गोल-मटोल, कोमल और हमेशा की तरह गाजा था, कुछ दूसरी सरह का दिखाई दे रहा था। वह बड़ी अजीब सी लग रही थी। अपने सफेद दाँतों से तरबूज के बीज कुटकते हुए उसने अपनी फंजी ऑखें पिता से हटा कर पेटे पर जमा दी। याकोष टन दोनों की तरफ मुस्कराता हुश्रा पारी-बारी से देख रहा था। और बहुत देर तक, जो पामिलो को बखर रहा था, पे वीनों पामोश सटे रहे। सभी लो, एक मिनट में!" शामिलो ने अचानक झोंपड़ी की मोर जातफहा। "तुम लोग भूप में से हट जायो तर तस में जान योदा