मालवा • - - - - - - -- सा पानी ले आऊँ । हम लोग कुछ शोरवा बनाएंगे .. ..... मैं तुम्हें ऐसा शोरवा खिलाऊँगा याकोव, जैसा कि तुमने पहले कभी भी नहीं खाया होगा । वय तक तुम दोनों श्राराम करलो । मैं एक मिनट में अभी आया । " उसने झोपड़ी के पास जमीन से एक केतली उठाई , तेजी से जान की ओर बढ़ा और शीघ्र ही उसकी भूरी पतों में प्रोमल होगया । मालवा और याकोव दोनों झोंपड़ी की ओर चले । " अब तुम यहां हो , मेरे सुन्दर बच्चे ! मैं तुम्हें तुम्हारे पाप के पास ले श्राई हूँ ! " मालवा ने बगल में याकोव के सशक शरीर , छोटी सी घुघराली भूरी दाढ़ी से भरे हुए चेहरे और चमकती हुई आँखों की तरफ देखते हुए कहा । " हाँ , हम लोग आ गए ” उत्सुकतापूर्वक उसकी ओर चेहरा धुमाते हुए उसने जवाब दिया -- " यह कितना अच्छा है । और समुद्र ! यह सुन्दर नहीं है " ___ " हाँ , यह एक चौड़ा सागर है - " अच्छा, क्या तुम्हारे बाप की उमर ज्यादा लगने लगी है । " " नहीं , बहुत ज्यादा तो नहीं । मैं तो उन्हें और भी ज्यादा भूरे बालों वाला देखने की उम्मीद कर रहा था । अभी तो उनके कुछ ही बात सफेद हुए हैं .. ..... . . और वह अब भी कितने स्वस्थ और प्रसन्न दिखाई देते हैं । " " तुम कहते थे, सुम्हें उन्हें देखे हुए किवने दिन होगए ? " “पाँच साल के करीव, मैं सोचता हूँ . .. " जब से कि उन्होंने घर छोड़ा है । मैं तब सत्रहवीं में चल रहा था .. .. " वे झोपड़ी में घुसे । अन्दर घुटनी थी । जमीन पर पढ़े हुए सन के बोरों से मछली की गन्ध भा रही थी । वे बैठ गए । याकोव एक मोटे पेड़ तने पर बैठा और मालवा एक वोरों के ढेर पर । उनके बीच में एक पीपा rd हुआ था जिसका ऊपर की भोर उलटा हुआ पेंदा मेज का काम देता 4 । वे चुपचाप एक दूसरे की ओर देखते हुए बैठे रहे । " श्रच्छा तो तुम
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