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पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/१८५

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तेरहवां अध्याय १६७ ४-इसका रियासतों के साथ कैसा संबंध रहेगा ? ५-अल्प-मतवालों के सहयोग को प्राप्त करने की क्या सबील होगी? ६-शासन की साधारण आकृति कैसी होगी? इसके अधि- कार और उनको क्रिया-रूप देने के ढंग तथा इसके उत्तरदायित्व क्या-क्या होंगे ? इस समय मेरी और आपकी समस्या इकट्ठ बैठ- कर इन प्रश्नों के ऐसे उत्तर देने में हल होगी, जिनको कार्य-रूप दिया जा सके, और अंत में पार्लियामेंट की मुहर लगा दी जाय । फेडरेशन शासन-विधान के दो आधार होने चाहिए । एक तो यह कि इसको कार्य-रूप दिया जा सके । ऐसा विधान बनाना व्यर्थ है, जिसको चलाया न जा सके। इससे न आपकी और न हमारी कठिनाइयाँ दूर होंगी। दूसरा आधार यह है कि विधान का विकास होता चले, और इस विकास में भारतीय विचार तथा भारतीय अनुभव अग्रसर रहें। हमारे उपनिवेशों के विधानों के इतिहास में यही बात पाई जाती है। जो कुछ मैंने आपके सामने कहा, उससे मेरा यह अभिप्राय नहीं कि आप किसी विशेष परिस्थिति में रक्खे जायें। आप हमारे दूसरे उपनिवेशों की ओर देखें, तो आपको पता चल जायगा कि विकास को अवस्था में उनके यहाँ भी बड़े परिश्रमी व्यक्ति काम कर रहे थे, और जेलों में भर रहे थे। आखिर यह सब कुछ होना ही था, वह हुआ। सांसारिक जीवन को चलानेवाले