सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२१८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

२०० गोल-सभा "इसलिये हमारी रियायतें क्रांतिकारियों द्वारा की गई नई मांगों के लिये प्रारंभिक किश्तें होंगी । जब कि राज-भक्त-समु- दाय और प्रजावर्ग नई-नई ब्रिटिश-कमजोरियों को देखकर और भी अनिश्चित हो जायगी। सच तो यह है कि गांधीवाद और. उसकी सहायक शक्तियां जल्दी या देर में कठिन संघर्ष करेंगे। और अंत में कुचल दिए जायेंगे। पतन "इन सब बातों के होते हुए भी यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि ब्रिटिश-जाति भारत से अपना शासन उठाने का कोई इरादा नहीं रखती। न वह भारतीय मामलातों में अपने को कर्तव्य-च्युत करेगी, या सुलह, शांति और अच्छे शासकों के लिये आव- श्यकता पड़ने पर अपने उच्च आधिपत्य से अलग हो जायगी। "हमारा यह इरादा कतई नहीं है कि हम भारत को, जोसम्राट् के मकुट का उज्ज्वल रत्न है, खो दें। जो हमारी अन्य उपनिवेशों की अपेक्षा कहीं अधिक ब्रिटिश साम्राज्य की विजय-पताका और शक्ति का हेतु है। भारत को खो देना ब्रिटिश साम्राज्य के पतन का अंतिम संकेत होगा। वह विशाल परिस्थिति ऐतिहासिक जीवन में एक चोट करेगी 1 "फिर, ऐसे संकट से छुटकारा न हो सकेगा। किंतु फिर भी हमें जानना चाहिए कि वह नस्ल और जाति जिसने अनेक नूतन आविष्कार किए हैं, जिसने बड़े-बड़े कठिन कामों को भारम-.