पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/२४

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१४ गोल-सभा पदार्थ बहुत सस्ते थे । नागरिक जीवन की कृत्रिमता व्यापक न थी। लोग शांत और स्थिर होकर जी रहे थे । व्यापार और शिल्प भरपूर रीति से परस्पर एक दूसरे को उत्तेजन देते थे। ग्रेट ब्रिटेन के सहयोग ने सर्व प्रथम देश के शिल्प और व्यापार को नष्ट किया, और आज वह एक मात्र मजदूरी या दलाली के रूप में रह गया है। ग्रेट ब्रिटेन ने इस बात पर खास तौर पर जोर दिया कि भारत कच्चा माल तैयार करे, और उसे इंगलैंड के मजदूर अपनी मशीन के ही बल पर तैयार कर साम्राज्य भर में बेचकर व्यापार करें । मैकाले ने एक बार कहा था कि अँगरेजी उद्योग-धंधों का आश्चर्यजनक विस्तार और भारत की दरिद्रता दोनो समसामयिक हैं। धीरे-धीरे कच्चे माल का भी व्यापार अँगरेज़ों के हाथ में चला गया। १००-१५० वर्ष पूर्व भारत का व्यापार अफ़ग़ानिस्तान और फारस होता हुआ योरप जाता था। यहाँ के मलमल और रेशम की संसार-भर में धूम थी। डॉ० टेलर ने २२ ग्रेन वजन का सूत १,३४८ गज़ देखा था। यह सब शिल्प और वाणिज्य नष्ट कर दिया गया, जिसकी कहानी बड़ी ही करुण है, और उसे दुह- राने की यहाँ आवश्यकता भी नहीं। कृषि की दशा, जिस पर अँगरेज-सरकार का बड़ा जोर है, बड़ी गंभीर है।लगभग २२ करोड़ किसान कृषि पर अवलंबित हैं, जिनमें, सर चार्ल्स इलियट के मतानुसार, ७ करोड़ मनुष्यों को जोवन-भर आधा पेट भोजन मिलता है । इनकी दुर्दशा जगत्-