सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

चौथा अध्याय a "हिंदोस्तानी हिंदोस्तान में आजाद होना चाहते हैं।" "आजादी की लडाइयाँ बातों से नहीं जीती जाती, कामों से जोती जाती हैं।" "देश-भक्ति से बड़ा कुछ नहीं है ।" जो अपनो आजादो खो देता है, वह अपना आधा धर्म खो देता है।" "गांधी सत्य की मूर्ति है । सत्य अमरत्व की मूर्ति है।" "जवाहरलाल युवकों का प्रतिबिंब है, युवक कार्य के प्रति- बिंब हैं।" "डायर और प्रोडायर ने जिस जमीन को लाल रंग में रंगा, उसमें हम आपका स्वागत करते हैं।" "स्वतंत्रता की वेदी पर अपने को बलिदान कर दो।" "हिंदू, सिख और मुसलमान एक हो जाओ या सदा के लिये जहन्नुम में जाओ।" पंडाल और लाजपत नगर-लाजपत-नगर बहुत सुंदर बनाया गया था । रावी के तट पर पट-मंडपों की शोभा देखने योग्य थी। पंडाल एक विशाल शामियाने के नीचे था, जिसमें २० हज़ार। आदमी बैठ सकते थे। सभापति तथा नेताओं के लिये मंच बनाया गया था। उसी पर स्वागत-समिति, आल इंडिया कांग्रेस कमेटी के सदस्यों तथा प्रतिष्ठित दर्शकों के बैठने को स्थान था। वेदी के सामने पत्र प्रतिनिधियों के लिये स्थान थे आने-जाने के लिये कई मार्ग थे। सर्वत्र खद्दर बिछाया गया था।