पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/८४

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गोल-सभा जबर्दस्त अहिंसक शक्ति खड़ी करने का मेरा इरादा है। अगर हाथ-पर-हाथ धरे बैठा रहा, तो इन दोनो हिंसक शक्तियों को निरंकुश होकर खुल खेलने का मौका मिल जायगा । अपनी बुद्धि के अनुसार मुझे अहिंसा की अमोघ शक्ति में निःशंक और अविचल श्रद्धा है। इतना होते हुए भी अगर मैं इस शक्ति का प्रयोग करने के बजाय चुपचाप बैठा रहूँ, तो मैं समझता हूँ कि मुझे पाप लगेगा। यह अहिंसा-शक्ति सविनय भंग द्वारा व्यक्त होगी । फ़िल- हाल तो सिर्फ सत्याग्रह-प्राश्रम के लोगों द्वारा हो इसकी शुरू- आत होगी, लेकिन बाद में तो जो इस नोति को स्पष्ट मर्यादाओं को कायम रक्खेंगे, वे सब इसमें शामिल हो सकेंगे। यही सोचा गया है। बगैर जोखम के जीत कहाँ? मैं जानता हूँ कि अहिंसात्मक संग्राम शुरू करके मैं पागलों का-सा साहस कर रहा हूँ, वैसा जोखम उठा रहा हूँ। लेकिन भारो-से-भारी जोखम उठाए विना सत्य की कभी जीत नहीं हुई है। जो लोग अपने से ज्यादा बहुसंख्यक, पुराने और अपने समान ही सभ्य, संस्कृत लोगों का जाने-अजाने नाश कर रहे हैं, उन लोगों के हृदय को बदल देने के लिये जितना जोखम उठाना पड़े, कम ही है अँगरेज़ों की सेवा ही मेरा उद्देश्य है 'हृदय को बदल देने' को बोत मैं जान-बूझकर कह रहा हूँ। ,