पृष्ठ:गोल-सभा.djvu/८५

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छठा अध्याय ७५ क्योंकि मैं अहिंसा द्वारा अँगरेजों के हृदय को इस तरह बदलना चाहता हूँ कि जिससे वे यह साफ़-साफ़ देख सकें कि उन्होंने हिंदुस्थान को कितना नुकसान पहुँचाया है । मैं आपके देश-भाइयों का बुरा नहीं चाहता । अपने देश भाइयों की तरह ही मैं उनकी भी सेवा किया चाहता हूँ। मैं मानता हूँ कि मैंने हमेशा उनकी सेवा ही को है । सन् १९१६ तक मैंने आँखें बंद करके उनकी सेवा की। लेकिन जब मेरी आँखें खुली, और मैंने असहयोग की आवाज बुलंद की, तब भी मेरा मकसद उनकी सेवा करना ही था। जिस हथियार का मैंने अपने प्रिय-से-प्रिय संबंधी के खिलाफ, नम्रता से, पर कामयाबी के साथ इस्तेमाल किया है, वहो हथियार मैंने सरकार के खिलाफ भी उठाया है। अगर यह बात सच है कि मैं भारतीयों के समान हो अँगरेजों को भी चाहता हूँ, तो यह ज्यादा देर तक छिपी नहीं रहेगी। बरसों तक मेरो परीक्षा लेने के बाद जैसे मेरे कुनबेवालों ने मेरे प्रेम के दावे को कबूल किया है, वैसे हो अँगरेज़ भी किसी करेंगे। । मुझे उम्मीद है कि इस लड़ाई में आम रिआया मेरा साथ देगी, और अगर उसने साथ दिया, तो सिवा उस हालत के कि अँगरेज़ लोग समय रहते ही समझ जायँ, देश पर आफत और दुःख के जो पहाड़ टूट पडेंगे, उनके कारण वज्र से भी कठोर दिलवालों के दिल पसीज जायँगे। सविनय भंग द्वारा सत्याग्रह करने को योजना में उक्त अन्यायों का विरोध करना खास बात होगी। ब्रिटिश या अँगरेज-जनता दिन क़बूल