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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१२६

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गो-दान
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दोनों मँडै़या से निकलकर गाँव की ओर चले। होरी ने कहा--पाँच घड़ी रात के ऊपर गयी होगी।

धनिया बोली- हाँ, और क्या; मगर कैसा सोता पड़ गया है। कोई चोर आये,तो सारे गाँव को मूस ले जाय।

'चोर ऐसे गाँव में नहीं आते। धनियों के घर जाते हैं।'

धनिया ने ठिठक कर होरी का हाथ पकड़ लिया और बोली--देखो,हल्ला न मचाना;नहीं सारा गाँव जाग उठेगा और बात फैल जायगी।

होरी ने कठोर स्वर में कहा--मैं यह कुछ नहीं जानता। हाथ पकड़कर घसीट लाऊँगा और गाँव के बाहर कर दूंँगा। बात तो एक दिन खुलनी ही है,फिर आज ही क्यों न खुल जाय। वह मेरे घर आयी क्यों? जाय जहाँ गोबर है। उसके साथ कुकरम किया, तो क्या हमसे पूछकर किया था?

धनिया ने फिर उसका हाथ पकड़ा और धीरे से बोली--तुम उसका हाथ पकड़ोगे,तो वह चिल्लायेगी।

'तो चिल्लाया करे।'

'मुदा इतनी रात गये इस अंधेरे सन्नाटे रात में जायगी कहाँ,यह तो सोचो।'

'जाय जहाँ उसके सगे हों। हमारे घर में उसका क्या रखा है।'

'हाँ, लेकिन इतनी रात गये घर से निकालना उचित नहीं। पाँव भारी है,कहीं डर-डरा जाय,तो और आफ़त हो। ऐसी दशा में कुछ करते धरते भी तो नहीं बनता!'

'हमें क्या करना है,मरे या जीये। जहाँ चाहे जाय। क्यों अपने मुंँह में कालिख लगाऊंँ। मैं तो गोबर को भी निकाल बाहर करूँगा।'

धनिया ने गम्भीर चिन्ता से कहा--कालिख जो लगनी थी,वह तो अब लग चुकी। वह अब जीते-जी नहीं छूट सकती। गोबर ने नौका डुबा दी।

'गोबर ने नहीं,डुबाई इसी ने। वह तो बच्चा था। इसके पंजे में आ गया।'

'किसी ने डुवाई,अब तो डूब गयी।'

दोनों द्वार के सामने पहुँच गये। सहसा धनिया ने होरी के गले में हाथ डालकर कहा--देखो तुम्हें मेरी सौंह,उस पर हाथ न उठाना। वह तो आप ही रो रही है। भाग की खोटी न होती,तो यह दिन ही क्यों आता।

होरी की आँखें आर्द्र हो गयीं। धनिया का यह मातृ-स्नेह उस अँधेरे में भी जैसे दीपक के समान उसकी चिन्ता-जर्जर आकृति को शोभा प्रदान करने लगा। दोनों ही के हृदय में जैसे अतीत-यौवन सचेत हो उठा। होरी को इस वीत-यौवना में भी वही कोमल हृदय बालिका नज़र आयी,जिसने पच्चीस साल पहले उसके जीवन में प्रवेश किया था। उस आलिगन में कितना अथाह वात्सल्य था,जो सारे कलंक,सारी बाधाओं और सारी मूलबद्ध परम्पराओं को अपने अन्दर समेटे लेता था।

दोनों ने द्वार पर आकर किवाड़ों के दराज से अन्दर झाँका। दीवट पर तेल की कुप्पी जल रही थी और उसके मध्यम प्रकाश में झुनिया घुटने पर सिर रखे,द्वार की ओर