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गो-दान
 


से पूरी शक्ति के साथ टोकरी पकड़ ली और बोली-इसे तो मैं न ले जाने दूंगी,चाहे तुम मेरी जान ही ले लो। मर-मरकर हमने कमाया,पहर रात-रात को सींचा,अगोरा,इसलिए कि पंच लोग मूछों पर ताव देकर भोग लगायें और हमारे बच्चे दाने-दाने को तरसें। तुमने अकेले ही सब कुछ नहीं कर लिया है। मैं भी अपनी वच्चियों के साथ सती हुई हूँ। सीधे टोकरी रग्व दो,नहीं आज सदा के लिए नाता टूट जायगा। कहे देती हूँ।

होरी सोच में पड़ गया। धनिया के कथन में सत्य था। उसे अपने वाल-बच्चों की कमाई छीनकर तावान देने का क्या अधिकार है? वह घर का स्वामी इमलिए है कि मबका पालन करे,इसलिए नहीं कि उनकी कमाई छीनकर बिरादरी की नजर में मुखम बने। टोकरी उसके हाथ से छूट गयी। धीरे से बोला--तू ठीक कहती है वनिया! दूसरों के हिस्से पर मेरा कोई जोर नहीं है। जो कुछ बचा है,वह ले जा,मैं जाकर पंचों से कहे देता है।

धनिया अनाज की टोकरी घर में रखकर अपनी दोनों लड़कियों के साथ पोते के जन्मोत्सव में गला फाड़-फाड़कर मोहर गा रही थी,जिनमें साग गांव गुन ले। आज यह पहला मौका था कि ऐसे शुभ अवसर पर बिगदरी की कोई औग्न न थी। मौर मे झुनिया ने कहला भेजा था,मोहर गाने का काम नहीं है;लेकिन धनिया कव मानने लगी। अगर विरादरी को उमकी परवा नहीं है,तो वह भी बिरादरी की परवा नहीं करती।

उसी वक्त होरी अपने घर को अस्सी रुपए पर झिगुरीसिंह के हाथ गिरों रख रहा था। डाँड़ के रुपए का इमके मिवा वह और कोई प्रबन्ध न कर मकता था। बीस रुपए तो तेलहन,गेहूँ और मटर से मिल गये। शेप के लिए घर लिखना पड़ गया। नोवेगम तो चाहते थे कि वैल विकवा लिए जायें;लेकिन पटेश्वरी और दातादीन ने इसका विरोध किया। बैल बिक गये,तो होरी खेती कैसे करेगा? बिरादरी उमकी जायदाद मे रुपए वसूल करे;पर ऐसा तो न करे कि वह गाँव छोड़कर भाग जाय। इस तरह वैल बच गये।

होरी रेहननामा लिखकर कोई ग्यारह बजे रात घर आया तो, धनिया ने पूछा-- इतनी रात तक वहाँ क्या करते रहे?

होरी ने जुलाहे का गुस्सा दाड़ी पर उतारते हुए कहा--करता क्या रहा,इस लौंडे की करनी भरता रहा। अभागा आप तो चिनगारी छोड़कर भागा,आग मुझे बुझानी पड़ रही है। अस्सी रुपए में घर रेहन लिखना पड़ा। करता क्या! अब हुक्का खुल गया। बिरादरी ने अपराध क्षमा कर दिया।

धनिया ने ओठ चबाकर कहा-न हुक्का खुलता, तो हमारा क्या बिगड़ा जाता था। चार-पाँच महीने नहीं किसी का हुक्का पिया,तो क्या छोटे हो गये? मैं कहती हूँ,तुम इतने भोंदू क्यों हो? मेरे सामने तो बड़े बुद्धिमान बनते हो,बाहर तुम्हारा मुंह क्यों बन्द हो जाता है? ले-दे के बाप-दादों की निसानी एक घर बच रहा था,आज तुमने उसका भी वारा-न्यारा कर दिया। इसी तरह कल यह तीन-चार बीघे जमीन है,इसे भी लिख देना और तब गली-गली भीख मांगना। मैं पूछती हूँ,तुम्हारे मुंह में जीभ न थी किं उन पंचों से पूछते,तुम कहाँ के बड़े धर्मात्मा हो,जो दूसरों पर डाँड़ लगाते फिरते हो,तुम्हारा तो मुंह देखना भी पाप है।