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गो-दान
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थी, बाजियाँ लगाती थी। वाह! ज़रा इन बूढ़े बाबा को देखो। किस शान से जा रहे हैं, जैसे सबको मारकर ही लौटेंगे। अच्छा, दूसरी तरफ़ से भी उन्हीं के बड़े भाई निकले। दोनों कैसे पैतरे बदल रहे हैं! इन हड्डियों में अभी बहुत जान है। इन लोगों ने जितना घी खाया है, उतना अब हमें पानी भी मयस्सर नहीं। लोग कहते हैं, भारत धनी हो रहा है। होता होगा। हम तो यही देखते हैं कि इन बुड्ढों-जैसे जीवट के जवान भी आज मुश्किल से निकलेंगे। वह उधरवाले बुड्ढे ने इसे दबोच लिया। बेचारा छुट निकलने के लिए कितना ज़ोर मार रहा है। मगर अब नहीं जा सकते बच्चा! एक को तीन लिपट गये। इस तरह लोग अपनी दिलचस्पी ज़ाहिर कर रहे थे; उनका सारा ध्यान मैदान की ओर था। खिलाड़ियों के आघात-प्रतिघात, उछल-कूद, धर-पकड़ और उनके मरने-जीने में सभी तन्मय हो रहे थे। कभी चारों तरफ़ से क़हकहे पड़ते, कभी कोई अन्याय या धांधली देखकर लोग 'छोड़ दो, छोड़ दो' का गुल मचाते, कुछ लोग तैश में आकर पाली की तरफ़ दौड़ते, लेकिन जो थोड़े-से सज्जन शामियाने में ऊँचे दरजे के टिकट लेकर बैठे थे, उन्हें इस खेल में विशेष आनन्द न मिल रहा था। वे इससे अधिक महत्त्व की बातें कर रहे थे।

खन्ना ने जिंजर का ग्लास खाली करके सिगार सुलगाया और राय साहब से बोले––मैंने आप से कह दिया, बैंक इससे कम सूद पर किसी तरह राज़ी न होगा और यह रिआयत भी मैंने आपके साथ की है; क्योंकि आपके साथ घर का मुआमला है।

राय साहब ने मूंछों में मुस्कराहट को लपेटकर कहा––आपकी नीति में घरवालों को ही उलटे छुरे से हलाल करना चाहिए?

'यह आप क्या फ़रमा रहे हैं।'

'ठीक कह रहा हूँ। सूर्यप्रताप सिंह से आपने केवल सात फी़ सदी लिया है, मुझसे नौ फी़सदी माँग रहे हैं और उस पर एहसान भी रखते हैं। क्यों न हो।'

खन्ना ने कहकहा मारा, मानो यह कथन हँसने के ही योग्य था।

'उन शर्तो पर मैं आपसे भी वही सूद ले लूंगा। हमने उनकी जायदाद रेहन रख ली है और शायद यह जायदाद फिर उनके हाथ न जायगी।'

'मैं अपनी कोई जायदाद निकाल दूंगा। नौ परसेंट देने से यह कहीं अच्छा है कि फ़ालतू जायदाद अलग कर दूं। मेरी जैकसन रोडवाली कोठी आप निकलवा दें। कमीशन ले लीजिएगा।'

'उस कोठी का सुभीते से निकलना ज़रा मुश्किल है। आप जानते हैं, वह जगह बस्ती से कितनी दूर है; मगर खैर, देखूँगा। आप उसकी कीमत का क्या अन्दाज़ा करते हैं?'

राय साहब ने एक लाख पच्चीस हज़ार बताये। पन्द्रह बीघे ज़मीन भी तो है उसके साथ। खन्ना स्तंभित हो गये। बोले––आप आज के पन्द्रह साल पहले का स्वप्न देख रहे हैं राय साहब! आपको मालूम होना चाहिए कि इधर जायदादों के मूल्य में पचास परसेंट की कमी हो गयी है।

राय साहब ने बुरा मानकर कहा––जी नहीं, पन्द्रह साल पहले उसकी क़ीमत डेढ़ लाख थी।