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पृष्ठ:गो-दान.djvu/१८४

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गो-दान
 

सोना लजा गयी-तुम तो भाभी,गाली देती हो।

'क्यों,इसमें गाली की क्या बात है?'

'मुझसे बोले,तो मुंह झुलस दूं।'

'तो क्या तुम्हारा ब्याह किसी देवता से होगा। गाँव में ऐसा सुन्दर,सजीला जवान दूसरा कौन है?'

'तो तुम चली जाओ उसके साथ,सिलिया से लाख दर्जे अच्छी हो।'

'मैं क्यों चली जाऊँ? मैं तो एक के साथ चली आयी। अच्छा है या बुरा।'

'तो मैं भी जिसके साथ व्याह होगा,उसके साथ चली जाऊँगी,अच्छा हो या बुरा।'

'और जो किसी बूढ़े के साथ व्याह हो गया?

सोना हँसी-मैं उसके लिए नरम-नरम रोटियाँ पकाऊँगी, उसकी दवाइयाँ कूटूछानगी,उसे हाथ पकड़कर उठाऊँगी,जव मर जायगा,तो मुंह ढाँपकर रोऊँगी।

'और जो किसी जवान के साथ हुआ!'

'तव तुम्हारा सिर,हाँ नहीं तो!'

'अच्छा वताओ,तुम्हें बूढ़ा अच्छा लगता है,कि जवान ?'

'जो अपने को चाहे वही जवान है,न चाहे वही बूढ़ा है।'

'दैव करे,तुम्हारा व्याह किसी बूढ़े मे हो जाय,तो देखू,तुम उसे कैसे चाहती हो। नव मनाओगी,किसी तरह यह निगोड़ा मर जाय,तो किसी जवान को लेकर बैठ जाऊँ।'

'मुझे तो उम बूढ़े पर दया आये।'

इस साल इधर एक शक्कर का मिल खुल गया था। उसके कारिन्दे और दलाल गाँव-गाँव घूमकर किमानों की खड़ी ऊख मोल ले लेते थे। वही मिल था,जो मिस्टर खन्ना ने खोला था। एक दिन उसका कारिन्दा इस गाँव में भी आया। किसानों ने जो उससे भाव-ताव किया,तो मालूम हुआ,गुड़ बनाने में कोई बचत नहीं है। जब घर में ऊख पेरकर भी यही दाम मिलता है, तो पेरने की मेहनत क्यों उटायी जाय? माग गाँव खड़ी ऊख बेचने को तैयार हो गया;अगर कुछ कम भी मिले,तो परवाह नही। तत्काल तो मिलेगा! किसी को वैल लेना था,किसी को वाक़ी चुकाना था,कोई महाजन से गला छुड़ाना चाहता था। होरी को बैलों की गोई लेनी थी। अबकी ऊख की पैदावार अच्छी न थी;इसलिए यह डर भी था कि माल न पड़ेगा। और जब गुड़ के भाव मिल की चीनी मिलेगी,तो गड़ लेगा ही कौन? सभी ने बयाने ले लिये। होरी को कम-से-कम सौ रुपये की आशा थी। इसमें एक मामूली गोई आ जायगी;लेकिन महाजनों को क्या करे! दातादीन,मॅगरू,दुलारी,झिंगुरीमिह सभी तो प्राण खा रहे थे। अगर महाजनों को देने लगेगा,तो सौ रुपए सूद-भर को भी न होंगे! कोई ऐसी जुगुन न सूझती थी कि ऊख के रुपए हाथ आ जायँ और किसी को खबर न हो। जब बैल घर आ जायेंगे,तो कोई क्या कर लेगा? गाड़ी लदेगी,तो सारा गाँव देखेगा ही,तौल पर जो रुपए मिलेंगे,वह सबको मालूम हो जायेंगे। सम्भव है मैंगरू और दातादीन हमारे साथ-साथ रहें। इधर रुपए मिले,उधर उन्होंने गर्दन पकड़ी।