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गो-दान
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शाम को गिरधर ने पूछा-तुम्हारी ऊख कब तक जायेगी होरी काका?

होरी ने झांसा दिया--अभी तो कुछ ठीक नहीं है भाई,तुम कब तक ले जाओगे?

गिरधर ने भी झांसा दिया--अभी तो मेरा भी कुछ ठीक नहीं है काका!

और लोग भी इसी तरह की उड़नघाइयाँ बताते थे, किसी को किसी पर विश्वास न था। झिंगुरीसिंह के सभी रिनियाँ थे,और सबकी यही इच्छा थी कि झिंगुरीसिंह के हाथ रुपए न पड़ने पायें,नहीं वह सबका सब हज़म कर जायगा। और जब दूसरे दिन असामी फिर रुपये माँगने जायगा,तो नया कागज़,नया नज़राना,नई तहरीर। दूसरे दिन शोभा आकर बोला--दादा कोई ऐसा उपाय करो कि झिंगुरी को हैज़ा हो जाय। ऐसा गिरे कि फिर न उठे।

होरी ने मुस्कराकर कहा- क्यों,उसके बाल-बच्चे नहीं हैं?

'उसके बाल-बच्चों को देखें कि अपने बाल-बच्चों को देखें? वह तो दो-दो मेहरियों को आराम से रखता है,यहाँ तो एक को रूखी रोटी भी मयस्सर नहीं,सारी जमा ले लेगा। एक पैसा भी घर न लाने देगा।'

'मेरी तो हालत और भी खराब है भाई,अगर रुपए हाथ से निकल गये,तो तबाह हो जाऊँगा। गोई के विना तो काम न चलेगा।'

'अभी तो दो-तीन दिन ऊख ढोते लगेंगे। ज्यों ही सारी ऊख पहुँच जाय,जमादार मे कहें कि भैया कुछ ले ले,मगर ऊख चटपट तौल दे,दाम पीछे देना। इधर झिगुरी से कह देंगे,अभी रुपए नहीं मिले।'

होरी ने विचार करके कहा-झिंगुरीसिंह हमसे-तुमसे कई गुना चतुर है सोभा! जाकर मुनीम से मिलेगा और उसीसे रुपए ले लेगा। हम-तुम ताकते रह जायँगे। जिस खन्ना वाबू का मिल है,उन्हीं खन्ना बाबू की महाजनी कोठी भी है। दोनों एक हैं।

शोभा निराश होकर बोला--न जाने इन महाजनों से भी कभी गला छुटेगा कि नहीं।

होरी बोला-इस जनम में तो कोई आशा नहीं है भाई! हम राज नहीं चाहते,भोग-विलास नहीं चाहते,खाली मोटा-झोटा पहनना,और मोटा-झोटा खाना और मरजाद के साथ रहना चाहते हैं। वह भी नहीं सधता।

शोभा ने धूर्तता के साथ कहा--मैं तो दादा,इन सबों को अवकी चकमा दूंगा। जमादार को कुछ दे-दिलाकर इस बात पर राजी कर लूंगा कि रुपए के लिए हमें खूब दौड़ायें। झिंगुरी कहाँ तक दौड़ेंगे।

होरी ने हँसकर कहा-यह सब कुछ न होगा भैया! कुशल इसी में है कि झिंगुरीसिंह के हाथ-पाँव जोड़ो। हम जाल में फंसे हुए हैं। जितना ही फड़फड़ाओगे,उतना ही और जकड़ते जाओगे।

'तुम तो दादा,बूढ़ों की-सी बातें कर रहे हो। कटघरे में फंसे बैठे रहना तो कायरता है। फन्दा और जकड़ जाय बला से;पर गला छुड़ाने के लिए जोर तो लगाना ही पड़ेगा। यही तो होगा झिंगुरी घर-द्वार नीलाम करा लेंगे;करा लें नीलाम! मैं तो चाहता हूँ कि हमें कोई रुपए न दे,हमें भूखों मरने दे,लातें खाने दे,एक पैसा भी