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गो-दान १९३

भीष्म उनका सबसे छोटा पुत्र था, और जन्म से ही दुर्बल होने के कारण उसे रोज एक-न-एक शिकायत बनी रहती थी। आज खाँसी है, तो कल बुखार; कभी पसली चल रही है, कभी हरे-पीले दस्त आ रहे हैं। दस महीने का हो गया था! पर लगता था पाँच-छ: महीने का। खन्ना की धारणा हो गयी थी कि यह लड़का बचेगा नहीं; इसलिए उसकी ओर से उदासीन रहते थे; पर गोविन्दी इसी कारण उसे और सब बच्चों से ज्यादा चाहती थी।

खन्ना ने पिता के स्नेह का भाव दिखाते हुए कहा––बच्चों को दबाओं का आदी बना देना ठीक नहीं, और तुम्हें दवा पिलाने का मरज है। जरा कुछ हुआ और डाक्टर बुलाओ। एक रोज और देखो, आज तीसरा ही दिन तो है। शायद आज आप-ही-आप उतर जाय।

गोविन्दी ने आग्रह किया––तीन दिन से नहीं उतरा। घरेलू दवाएँ करके हार गयी।

खन्ना ने पूछा––अच्छी बात है, बुला देता हूँ, किसे बुलाऊँ?

'बुला लो डाक्टर नाग को।'

'अच्छी बात है, उन्ही को बुलाता हूँ, मगर यह समझ लो कि नाम हो जाने से ही कोई अच्छा डाक्टर नहीं हो जाता। नाग फ़ीस चाहे जितनी ले लें, उनकी दवा से किसी को अच्छा होते नहीं देखा। वह तो मरीजों को स्वर्ग भेजने के लिए मशहूर हैं।'

तो जिसे चाहो बुला लो, मैंने तो नाग को इसलिए कहा था कि वह कई बार आ चुके हैं।'

'मिस मालती को क्यों न बुला लूँ? फ़ीस भी कम और बच्चों का हाल लेडी डाक्टर जैसा समझेगी, कोई मर्द डाक्टर नहीं समझ सकता।'

गोविन्दी ने जलकर कहा––मैं मिस मालती को डाक्टर नहीं समझती।

खन्ना ने भी तेज आँखों से देखकर कहा––तो वह इंगलैंड घास खोदने गयी थी, और हजारों आदमियों को आज जीवन-दान दे रही है। यह सब कुछ नहीं है?

'होगा, मुझे उन पर भरोसा नहीं है। वह मरदों के दिल का इलाज कर लें। और किसी की दवा उनके पास नहीं है।'

बस ठन गयी। खन्ना गरजने लगे। गोविन्दी बरसने लगी। उनके बीच में मालती का नाम आ जाना मानो लड़ाई का अल्टिमेटम था।

खन्ना ने सारे काग़ज़ों को जमीन पर फेंककर कहा––तुम्हारे साथ जिन्दगी तलख हो गयी।

गोविन्दी ने नुकीले स्वर में कहा––तो मालती से व्याह कर लो न! अभी क्या बिगड़ा है, अगर वहाँ दाल गले।

'तुम मुझे क्या समझती हो?'

'यही कि मालती तुम-जैसों को अपना गुलाम बनाकर रखना चाहती है, पति बनाकर नहीं।'

'तुम्हारी निगाह में मैं इतना ज़लील हूँ?'